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भेड़ाघाट

Thursday, August 26, 2010

अधकचरी कहानी में दफन भोपाल कांड

जब से भोपाल गैस मामले में अदालत ने अपना फैसला सुनाया है और मीडिया ने इस तथ्य को उजागर किया कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन के साथ शाही व्यवहार किया तभी से कांग्रेस पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बचाकर दूसरे लोगों पर जिम्मेदारी थोपने के अपने पुराने खेल पर उतर आई है। कांग्रेस की कोशिश हरसंभव तरीके से यह साबित करने की है कि भोपाल गैस मामले में दोषियों को बच निकलने का अवसर देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी जिम्मेदार नहीं थे। कांग्रेस के लिए पसंदीदा निशाना पीवी नरसिंह राव हैं, जो बौद्धिक और साथ ही प्रशासनिक रूप से राजीव गांधी से कहीं अधिक श्रेष्ठ थे। जिन लोगों ने कांग्रेस की इस मुहिम में मदद की है और इस प्रकार नेहरू-गांधी परिवार को उपकृत किया उनमें मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और पूर्व विदेश सचिव एमके रसगोत्रा शामिल हैं। अर्जुन सिंह ही भोपाल गैस कांड के समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अर्जुन सिंह के अनुसार दिसंबर 1984 में भोपाल में भयानक गैस लीक होने के तत्काल बाद उन्हें यह सुनकर धक्का लगा कि वारेन एंडरसन इस त्रासदी के पीडि़तों के प्रति संवेदना-सहानुभूति प्रकट करने खुद ही भोपाल आ रहा है। उन्होंने तत्काल ही एंडरसन की गिरफ्तारी के आदेश दिए, लेकिन इस मसले पर राजीव गांधी से उनकी कोई बातचीत नहीं हुई, जो उसी दिन भोपाल आए थे। अगले दिन एक जनसभा में उनकी राजीव गांधी से फिर मुलाकात हुई, लेकिन यहां भी प्रधानमंत्री ने एंडरसन के बारे में कोई पूछताछ नहींकी। इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अज्ञात अधिकारियों ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को टेलीफोन कर एंडरसन को छोड़ देने के लिए कहा। मुख्य सचिव ने यह बात अर्जुन सिंह को बताई और एक दिन पहले एंडरसन को सलाखों के पीछे भेजने का आदेश देने वाले अर्जुन सिंह ने उसे छोड़ देने की अनुमति दे दी। अर्जुन सिंह ने यह जानने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री नरसिंह राव को एक फोन भी करने की जरूरत नहीं समझी कि क्या वह वास्तव में चाहते हैं कि एंडरसन को छोड़ दिया जाए और क्या उन्होंने अपने यहां के किसी अधिकारी को एंडरसन को छोड़ देने के लिए फोन करने के लिए कहा था? हैरत की बात है कि अर्जुन सिंह ने इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के संदर्भ में प्रधानमंत्री से शिकायत करना भी जरूरी नहींसमझा। अर्जुन सिंह के बयान से स्पष्ट है कि उन्होंने गृह मंत्रालय के एक अज्ञात अधिकारी के टेलीफोन के आधार पर ही एंडरसन को बच निकलने का मौका दे दिया। इसके अतिरिक्त यह भी सबको पता है कि वारेन एंडरसन के प्रति अर्जुन सिंह के कथित सख्त रवैये के बावजूद एंडरसन से राजकीय अतिथि जैसा व्यवहार किया गया। उसे किसी मजस्ट्रिेट के सामने भी पेश नहींकिया गया, बल्कि मजिस्ट्रेट को उसके सामने हाजिर किया गया। तथ्य यह है कि मजिस्ट्रेट को गेस्ट हाउस ले जाया गया ताकि एंडरसन को जमानत पर छोड़ा जा सके। इसके बाद अर्जुन सिंह ने एंडरसन को दिल्ली ले जाने के लिए सरकारी हेलीकाप्टर भी मुहैया कराया। इसके बाद भी अर्जुन सिंह हम सभी को यह समझाना चाहते हैं कि हेलीकाप्टर की व्यवस्था उनकी जानकारी अथवा सहमति के बिना की गई-बावजूद इसके कि दस्तावेज में उनके आदेश का जिक्र है। लॉग बुक में लिखा है-मुख्यमंत्री के निर्देश पर विशेष उड़ान। कोई मुख्यमंत्री इससे अधिक गैर-जिम्मेदार कैसे हो सकता है? अर्जुन सिंह के इस बयान से हमें यह भी पता चलता है कि नेहरू-गांधी परिवार की छवि पर कोई आंच न आने देने के लिए सच्चाई का गला घोंटने और इतिहास को झूठा सिद्ध करने में कांग्रेस के नेता किस हद तक जा सकते हैं? भोपाल गैस मामले में अर्जुन सिंह के इस बयान को मई 2008 में नेहरू-गांधी परिवार के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हुए दिए गए उनके बयान के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। तब उन्होंने कहा था कि जब मैं मार्च 1960 में जवाहर लाल नेहरू जी से मिला तब मैंने उनके और उनके परिवार के प्रति अपनी पूर्ण निष्ठा की शपथ ली। अपने जीवन के पिछले 48 वर्र्षो में मैंने पूरी तरह इसका पालन किया। मैं अपने बाकी जीवन में इस निष्ठा और प्रतिबद्धता को बरकरार रखने के लिए सब कुछ करूंगा। नेहरू-गांधी परिवार के प्रति इतनी स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने में कांग्रेस पार्टी के नेता अकेले नहीं हैं। अनेक नौकरशाह और कूटनीतिज्ञ भी एक राजनीतिक परिवार अथवा राजनीतिक दल के प्रति अपनी वफादारी में इतना आगे बढ़ जाते हैं कि खुद को ही फंसा बैठते हैं। पूर्व विदेश सचिव एमके रसगोत्रा भी ऐसे ही एक नौकरशाह हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस पार्टी के विदेशी मामलों के सेल के सदस्य बन गए। उन्होंने एक साक्षात्कार में एंडरसन की रिहाई के मामले में अजीब जवाब दिए। जब उनसे पूछा गया कि क्या राजीव गांधी से सलाह ली गई थी? उन्होंने जवाब दिया-राजीव गांधी दिल्ली में नहीं थे। फिर उनसे पूछा गया कि क्या रीगन ने राजीव गांधी को फोन किया था? रसगोत्रा ने कहा-हो सकता है। एक अन्य सवाल के जवाब में रसगोत्रा ने कहा कि नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के उप प्रमुख गार्डन स्ट्रीब ने उनसे कहा था कि एंडरसन भारत आने के लिए तैयार है, बशर्ते उसे सुरक्षित वापस जाने दिया जाए। चूंकि एंडरसन की भोपाल यात्रा इस शर्त से बंधी थी, इसलिए रसगोत्रा ने कैबिनेट सचिव और गृह मंत्री से संपर्क किया। कैबिनेट सचिव ने एंडरसन की रिहाई की अनुमति दी। रसगोत्रा गृह मंत्रालय के भी संपर्क में थे। राजीव गांधी उस समय वहां नहीं थे, इसलिए प्रधानमंत्री से बात करने का अवसर नहीं आया। रसगोत्रा का कहना है कि राजीव गांधी का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह कितनी असाधारण बात है? दिसंबर 1984 में भारत का विदेश सचिव रहा व्यक्ति बता रहा है कि अमेरिकी दूतावास के उपप्रमुख को एंडरसन के सुरक्षित वापस जाने का आश्वासन दिया गया था। इसलिए अपनी गिरफ्तारी के बाद एंडरसन ने गृह मंत्री (राव) से संपर्क किया और उसकी रिहाई हो गई। गृह मंत्री ने एक बार भी अपने बॉस यानी प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बात नहींकी, जिनके पास विदेश मंत्रालय भी था। हमारे विदेश सचिव ने भी भोपाल गैस कांड जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मामले के मुख्य अभियुक्त से जुड़े मसले पर अपने बॉस यानी राजीव गांधी से बात करने की जरूरत नहीं समझी। इसलिए कि राजीव गांधी उस समय दिल्ली में नहीं थे। इस तथ्य पर भी गौर करें कि अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन ने संभवत: राजीव गांधी से बात की थी और इसकी जानकारी हमारे विदेश सचिव को नहीं थी। क्या कोई इन तथ्यों पर भरोसा कर सकता है? यदि यह सब वाकई सत्य है तो क्या हमें अपने विदेश सचिवों की काबिलियत पर चिंतित नहीं होना चाहिए? हमें अंदाज लगा लेना चाहिए कि हमारी सेवाओं का स्तर कितना गिर गया है कि एक विदेश सचिव बड़ी गंभीरता से यह सोचता है कि वह जो अधकचरी कहानी सुना रहा है उस पर देश की जनता भरोसा कर लेगी।

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