bhedaghat

bhedaghat
भेड़ाघाट

Thursday, September 23, 2010

अयोध्‍या विवाद पर फैसला सुनाने पर 28 तक स्‍टे

अयोध्‍या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक हिंदुओं का है या मुसलमानों का, इस पर आने वाला फैसला फिलहाल 28 सितंबर तक टल गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच 24 सितंबर को यह फैसला सुनाने वाली थी। लेकिन इसे टाले जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया और 28 तारीख को सुनवाई की अगली तारीख तय कर दी। फैसला टाले जाने की दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ऐसा जनहित में किया जा रहा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की तीन जजों की पीठ को शुक्रवार को बताना था कि अयोध्या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक किसका है। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच फैसला टाले जाने की मांग वाली रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका 17 सितंबर को खारिज कर चुकी थी। उन पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। लेकिन त्रिपाठी यही मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। उनकी दलील है कि इस विवाद का अदालत के बाहर हल निकल सकता है और इसके लिए थोड़ा समय दिए जाने की जरूरत है। लिहाजा फैसला टाला जाए। सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से उनकी दलील मानते हुए तर्क दिया कि इस मामले में ‘हीलिंग टच’ की जरूरत है।

पहले सुनवाई से कर दिया था सुप्रीम कोर्ट ने इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। लेकिन बृहस्पतिवार को कोर्ट में हुई सुनवाई हुई। कल यह याचिका जस्टिस अल्तमश कबीर तथा एके पटनायक की बेंच के समक्ष लगाई गई थी। बेंच ने इस पर सुनवाई से इनकार करते समय यह नहीं बताया था कि मामले को पुन: सुनवाई के लिए कब लिया जाएगा। जस्टिस कबीर ने कहा था कि चीफ जस्टिस की इजाजत से रजिस्ट्रार यह मामला सुनवाई के लिए समुचित बेंच को सौंपेंगे। बेंच ने कहा था कि एक सिविल मामला होने के कारण हमें इस पर फैसले का हक नहीं है। ऐसे में यह मामला वैसी बेंच के पास जाएगा, जिसके पास हक है।

साठ साल से चल रहा है मुकदमा
अयोध्या में विवादित स्थल की जमीन के मालिकाना हक को लेकर 1950 से मुकदमा चल रहा है। इसमें चार मुख्य दावेदार हैं- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, रामजन्मभूमि न्यास तथा दिवंगत गोपाल सिंह विशारद। इनके वकीलों का कहना है कि वे कोई समझौते की बात नहीं चला रहे हैं। केवल निर्मोही अखाड़ा ने फैसले की तारीख तीन दिन बढ़ा कर 27 सितंबर करने की बात की थी।

फैसला टाले जाने पर किसने क्‍या कहा
मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत हूं। इस पूरे मामले में असामाजिक और त‍थाकथित राजनीतिक तत्वों ने वकीलों की मेहनत पर पानी फिरवा दिया है।
-रंजना अग्निहोत्री, श्रीराम जन्मभूमि पुनर्उद्धार समिति की वकील

हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है। हालांकि, हम चाहते थे कि यह फैसला जल्द से जल्द आए।
जफरयाब जिलानी, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील

इस मामले में याचिकाकर्ता रमेशचंद्र त्रिपाठी का इरादा संदेह के दायरे में है। रमेश चंद्र त्रिपाठी के पीछे कौन लोग हैं, यह देखा जाना चाहिए।
- रविशंकर प्रसाद, भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्‍ता


अयोध्या विवाद का फैसला कौन टलवाना चाहता है?
अयोध्या के फैसले को टालने व मध्यस्तता की मांग करने वाले रमेशचंद्र त्रिपाठी के पीछे कौन है ! इस रहस्य से अभी तक पर्दा नही उठ सका है। इस मामले में उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार से जुड़े नौकरशाह की चर्चा हो रही है। त्रिपाठी सेना में एकाउंटेंट थे, लेकिन इनका राम जन्म भूमि विवाद से पुराना नाता है।

जानकारों के मुताबिक करीब 15 साल की उम से वे इस मुद्दे से किसी न किसी तरह जुड़े है। मुकदमें मे इनकी पहचान प्रतिवादी संख्या 17 के रूप में है। हालांकि ये निष्क्रियपक्षकार के रूप में चर्चित है।

कांग्रेस के नेता व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्रीपति मिश्र के रिश्ते के भाई है। स्वर्गीय मिश्र के बेटे पूर्व एमएलसी राकेश मिश्र ने कहा कि त्रिपाठी रिश्तेदार जरूर है पर पिता के स्वर्गवासी होने के बाद उन्होने आना कम कर दिया इसलिए उनसे मुलाकात नही हुई है। सुना है कि वे लखनऊ में अपनी बेटी के परिवार के साथ रहते है। त्रिपाठी मूल रूप से अंबेडकरनगर जिले रहने वाले है।

त्रिपाठी ने 2005 में अयोध्या विवाद में गवाही दी थी। इनके अधिवक्ता अयोध्या के वीरेश्वर द्विवेदी थे। जिनकी बहस के बाद फैजाबाद कोर्ट ने विवादित स्थल का ताला खोला था। त्रिपाठी ने अपनी गवाही में कई तथ्यात्मक भूले की थी। त्रिपाठी की गवाही पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने आपत्ति की थी। त्रिपाठी ने कोर्ट में कहा था कि दोपहर के समय मेरी याददाश्त कम हो जाती है।

त्रिपाठी ने अपनी गवाही में 1946 से 1949 की घटनाओं का जि‎क्र किया। जिस पर जिलानी ने उनसे सवाल किया कि आप भूल रहे है तो 1946 से 1949 की घटनाओं की याद आप को कैसे है तो त्रिपाठी ने कहा था कि मेरी स्मृति में पुरानी बातें रहे गइ है। 1987 में पिंडारी ग्लेशियर में स्नोबर्ग में फंसने के बाद से याददाश्त कमजोर हुई है। अयोध्या मामले में त्रिपाठी ने गवाही जरूर दी लेकिन अपनी निष्क्रियता के कारण लिखित बयान दाखिल नही किया था।

लखनऊ बेंच में त्रिपाठी की फैसला टालने और मध्यस्तता कराने की अर्जी पर सुनवाई के दौरान वे कोर्ट में मौजूद थे। पत्रकरों के सवालों का जवाब देते हुए त्रिपाठी अयोध्या विवाद का फैसला आने से रोकने के लिए उनके पीछे कोई और नही है। यह उनका स्वयं का निर्णय है।

त्रिपाठी ने कहा कि अर्जी देने में देर भले ही हुई है देशहित में ऐसी कोशिश करना गलत नहीं है। उन्होने कहा कि देश के कई राज्य वैसे ही नक्सलवाद और माओवाद जैसी परेशानियों से जूझ रहा हैं। देश में राष्ट्रमंडल खेल भी होने जा रहे हैं। ऐसे में जोखिम नहीं लिया जा सकता है। राज्य सरकार ने भी खतरे को देखते हुए केंद्र से बड़ी संख्या में अर्ध सैनिक बलों की मांगा है। इसीलिए मामले की सुनवाई कर रही विशेष पूर्ण पीठ के सामने अर्जी देकर फसला टालने व मध्यस्तता की मांग की थी।

त्रिपाठी की सक्रियता सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ताओं के गले के नीचे नही उतर रही है। ऐसा ही कुछ जन्मभूमि पक्ष के अधिवकताओं का है। गौरतलब है कि अयोध्या मामले की विशेष पीठ ने त्रिपाठी की अर्जी को खारिज करते हुए 50 हजार कर जुर्माना ठोका है।


...और ढह गई बाबरी मस्जिद

6 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहाया जा रहा था तो उस वक्त हजारों साल पुरानी हिंदू-मुस्लिम एकता भी ढह रही थी। हिंदूओं के एक बड़े तबके का मनाना है कि बाबरी मस्जिद राम मंदिर को ढहा कर बनाई गई थी जब मुसलमानों के एक तबका इससे इंकार करता है। इन सब के बीच पूरा मामला कोर्ट में गया, कोर्ट के साथ फिर देश में इसे लेकर राजनीति शुरू हुई और देखते-देखते राम मंदिर निर्माण को लेकर एक पूरा का पूरा आंदोलन ही खड़ा हो गया। इस आंदोलन की अगुवाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों ने की। इसमें भाजपा, विहिप जैसे संगठन शामिल थे। तस्वीरों में देखिए कैसे ढहा दी गई बाबरी मस्जिद..


अयोध्या के बारे में जानिए सबकुछ

अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। यह फैजाबाद जिले के अन्तर्गत आता है। रामजन्मभूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएं तट पर बसा है। प्राचीन काल में इसे कौशल देश कहा जाता था। अयोध्या हिन्दुओं का प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच र्तीथकरों का जन्म हुआ था।

रामकोट

शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान है। यहां भारत और विदेश से श्रद्धालुओं का साल भर आना-जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।

त्रेता के ठाकुर

यह मंदिर उस स्थान पर बना है जहां भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। लगभग 300 साल पहले कुल्लू के राजा ने यहां एक नया मंदिर बनवाया। इस मंदिर में इंदौर के अहिल्याबाई होल्कर ने 1784 में और सुधार किया। उसी समय मंदिर से सटे हुए घाट भी बनवाए गए। कालेराम का मंदिर नाम से लोकप्रिय नये मंदिर में जो काले बलुआ पत्थर की प्रतिमा स्थापित है वह सरयू नदी से हासिल की गई थी।

हनुमान गढ़ी

नगर के केन्द्र में स्थित इस मंदिर में 76 कदमों की चाल से पहुंचा जा सकता है। कहा जाता है कि हनुमान यहां एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनि की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

नागेश्वर नाथ मंदिर

कहा जाता है कि नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य के काल के बाद सुरक्षित बचा है। शिवरात्रि का पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

कनक भवन

हनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने के मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है। इसी कारण बहुत बार इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। यह मंदिर को टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था।

जैन मंदिर

हिन्दुओं के मंदिरों के अलावा अयोध्या जैन मंदिरों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। जहां जिस र्तीथकर का जन्म हुआ था, वहीं उस र्तीथकर का मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था।

वायु मार्ग-

अयोध्या का निकटतम एयरपोर्ट लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ में है। यह एयरपोर्ट देश के प्रमुख शहरों से विभिन्न फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा है।

रेल मार्ग-

फैजाबाद अयोध्या का निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन मुगल सराय-लखनऊ लाइन पर स्थित है। उत्तर प्रदेश और देश के लगभग तमाम शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग-

उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बसें लगभग सभी प्रमुख शहरों से अयोध्या के लिए चलती हैं। राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग से अयोध्या जुड़ा हुआ है।
सत्ता के साथ कमजोर हुआ राम मंदिर आंदोलन

देखते ही देखते राम मंदिर आंदोलन को दो दशक बीत गए। इस बीच अयोध्या की सरयू नदी में काफी पानी बह चुका है। आंदोलन के समय कई नेता, साध्वी और संत खूब सुर्खियों में रहे। धुआंधार और आग उगलने वाले भाषणों ने उन्हें जमकर लोकप्रियता दिलाई। जिनकी एक आवाज पर लाखों की भीड़ मैदानों में उमड़ती थी, वे वक्त के साथ जाने कहां खो गए। छह दिसंबर 1992 के बाद आंदोलन की आग ठंडी होती गई। अगली कतार के नेताओं में से कुछ तो मंदिर को पीछे छोड़कर भाजपा की राजनीति के सहारे आगे बढ़ गए, लेकिन ज्यादातर खुद को आज तक ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सत्ता में आकर मंदिर को भूल बैठी भाजपा से उन्हें ढेरों शिकायतें रही हैं। उनका कहना है कि भाजपा ने यह मुद्दा हथियाकर सियासी फायदा बटोरा। आंदोलन के इन किरदारों में से अब कोई भागवत कथाओं में व्यस्त है तो कोई पिछड़े इलाकों में शिक्षा के प्रसार में जुटा है। कुछ शीर्ष बुजुर्ग नेताओं का जोश उम्र और सेहत के चलते ढलान पर है। तस्वीरों में देखिए इन नेताओं को

2 comments:

  1. क्यों विकल, क्यों विकल, क्यों विकल,
    'बाबरी' या जनम-स्थल?
    कौन होगा यहाँ कल सफल,
    सर से ऊंचा हुआ अबतो जल,
    कर ले मंजूर सब एक हल,
    हॉस्पिटल, हॉस्पिटल, हॉस्पिटल!!!
    -mansoor ali hashmi
    http://aatm-manthan.com

    ReplyDelete
  2. लगता भी नहीं कि जल्दी से हल भी नहीं हो पायेगा ....

    इसे पढ़े, जरुर पसंद आएगा :-
    (क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

    ReplyDelete