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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

24,000 करोड़ स्वाहा फिर भी प्यासी पेयजल योजना

फैक्ट फाइल....
-43 जिलों की 100 से ऊपर पंचायतों में नलजल योजना नहीं पहुंंची
- 8 जिलों में स्थिति ठीक, लेकिन बेहतर नहीं
- 14 हजार पंचायतों भी ठप पड़ी हैं योजनाएं
- दो साल से पीएचई ने सर्वे तक नहीं किया
- नाकारा साबित हुआ पीएचई विभाग
भोपाल। आपको विश्वास नहीं होगा लेकिन यह हकीकत है कि पिछले एक दशक में मप्र सरकार ने करीब 24,000 करोड़ रूपए लोगों की प्यास बुझाने वाली पेयजल योजनाओं पर स्वाहा कर दिया है, लेकिन गर्मियों में हर साल यहां की आधी से अधिक आबादी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसती रहती है। दरअसल, खरबों रूपए खर्च करने के बाद भी पेयजल योजनाएं प्यासी हैं। प्रदेश में एक बार फिर से जलसंकट की आहट सुनाई दे रही है। ऐसे में सरकार और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन की चिंता सताने लगी है। यही नहीं सरकार ने प्रदेश के 51 जिलों में पेयजल के लिए 2017-18 के बजट में 2493 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी प्यास लगने पर कुंआ खोदने की मप्र सरकार की नीति लोगों की प्यास बुझा पाएगी इसमें संदेह है। 8 हजार पंचायतों में नहीं पहुंंची नल-जल योजना प्रदेश में हर घर तक सरकार की हर योजना का लाभ पहुंचाने का कागजी खाका तैयार किया गया है। सरकार का दावा है कि प्रदेश की सभी 22,825 ग्राम पंचायतों और 54,904 गांवों में पेयजल की व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन हकीकत कुछ और है। योजनाएं भले ही लोक कल्याण के लिए बनाई गई हैं लेकिन उनका बेहतर क्रियान्वयन न होने के कारण लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। योजनाएं या तो कागजों में ही तैयार कर दी गई हैं या फिर बजट का अभाव बताकर बीच में ही रोक दी गई हैं। आलम यह है की करोड़ों रुपये बर्बाद होने के बाद भी जनता को लाभ नहीं मिल रहा है। स्थिति कुछ ऐसी है कि प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नलजल योजना के नाम सुनते ही पंचायतों में लोगों का गुस्सा फूटने लगता है। 8 साल पहले शुरू की गई योजना आज भी अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाई है। योजना के नाम पर हर साल लोगों को झुनझुना पकड़ाया जाता है, लेकिन गर्मी में न अधिकारी नजर आते हैं और न ही माननीय। पंचायत ग्रामीण विकास विभाग को पंचायतों ने जो आंकड़े भेजे हैं उसके मुताबिक 8 हजार पंचायतों में आज तक यह योजना नहीं पहुंची है, जबकि प्रदेश की 22,825 ग्राम पंचायतों में 14 हजार पंचायतों में योजना पहुंची तो है, किंतु वहां भी स्थिति बुरी है। लोग नहीं जानते योजना के बारे में प्रदेश में नल-जल योजनाओं की हकीकत क्या है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हजारों ग्राम पंचायतों में नल-जल योजनाओं के बारे में लोग जानते ही नहीं। दरअसल, कहीं योजना के तहत बिछाई गई पाइप लाइन गायब है, तो कहीं पानी टंकियां ही रख-रखाव के अभाव में क्षतिग्रस्त होती जा रही हैं। जिलों की कई नल-जल योजनाएं तो ऐसी हैं, जहां चार साल में भी टंकियों से पानी की एक बूंद भी ग्रामीणों को नहीं मिल सकी है। इसके विपरीत ग्राम पंचायतें और पीएचई आमने-सामने की स्थिति में हैं। पंचायतों का आरोप है कि पीएचई टंकियों को शुरू नहीं करा पा रही है, तो पीएचई अधिकारी कहते हैं कि हमारा काम योजना तैयार कर पंचायतों को हैंडओवर करना है। इसके बाद रख-रखाव का जिम्मा पंचायतों का होता है। इस तरह ग्राम पंचायत और पीएचई के बीच झूलती नल-जल योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। दो विभाग में फंसी योजना मप्र के हजारों गांवों की इस तकलीफ की जड़ में है सरकारी व्यवस्था की आड़ में दो विभागों के बीच चल रही है रस्साकशी। ये हैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग। बताया जा रहा है कि बंद पड़ी नल-जल योजनाओं को शुरू करने के लिए सरकार ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी और पंचायत विभाग को फंड इस उम्मीद में दिए कि योजनाएं शुरू हो जाएंगी और गर्मी के सीजन में कोई तकलीफ नहीं होगी, पर हालात जस के तस हैं। आज प्रदेश में स्थिति यह है कि 2009 में प्रदेश भर में एक साथ सभी जिलों में नलजल योजना शुरू की थी। लेकिन आज 8 साल बाद स्थिति यह है कि प्रदेश के 51 जिलों में से 43 जिलों की 100 से ऊपर पंचायतों में नलजल योजना ही नहीं पहुंंच पाई है। 8 जिलों में स्थिति ठीक, लेकिन बेहतर नहीं। प्रदेश में 14 हजार पंचायतों में भी योजना ठप है। दो साल से पीएचई ने सर्वे तक नहीं किया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि 24,000 करोड़ रूपए खर्च करने के बाद भी पीने के पानी के लिए आज भी ग्रामीण रो रहे हैं। आंकड़ों की बाजीगरी मप्र की साढ़े सात करोड़ आबादी की प्यास बुझाने के लिए हर साल आंकड़ों की ऐसी बाजीगरी की जाती है जिससे ऐसा लगता है प्रदेश में जलधारा बह रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 15,270 नलजल योजनाएं स्थापित हैं। प्रदेश में 5,23,247 हैंडपंप हैं। लेकिन सरकारी दावे ऐसे हैं जैसे लगता है सरकार ने हर घर को पानी मुहैया करा दिया है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा पेयजल आपूर्ति के लिए विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं। विभाग का दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों की कुल एक लाख 27 हजार 552 बसाहट में से एक लाख 7 हजार 708 बसाहट में 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से पेयजल की व्यवस्था की जा चुकी है। शेष 19 हजार 844 बसाहट में 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से पीने के पानी के सप्लाई की व्यवस्था की गई है, जिसे बढ़ाकर 55 लीटर के मान से किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। प्रदेश के ग्रामीण बसाहटों में पिछले 11 साल के दौरान लगभग 2 लाख 11 हजार हैंडपम्प स्थापित कर पेयजल उपलब्ध करवाया गया है। इसी तरह लगभग 53 हजार ग्रामीण शाला में भी पीने के पानी के इंतजाम किए गए हैं। साल 2005 में 6,694 नल-जल योजना वाले बड़े ग्रामों में अब 15 हजार 129 योजनाएं चल रही हैं। पिछले 11 साल में लगभग 8,435 नल-जल योजना के कार्य पूरे किए गए हैं। फ्लोराइड की अधिकता की समस्या वाले कुछ जिलों और उनकी बसाहटों में वैकल्पिक योजनाओं के माध्यम से शुद्ध पेयजल की योजनाओं के क्रियान्वयन को प्राथमिकता दी जा रही है। राज्य सरकार की पहल पर लगभग 8,406 बसाहट में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई है। परम्परागत पेयजल स्रोतों के पुनर्जीवीकरण के कार्य भी करवाए जा रहे हैं। अधिक से अधिक घरेलू नल कनेक्शन द्वारा ग्रामीण आबादी को पेयजल उपलब्ध करवाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 'नल से जल, आज और कलÓ अभियान में बंद नल-जल योजनाओं को ग्राम पंचायतों द्वारा चालू करवाया जा रहा है। इनमें वे योजनाएं शामिल हैं, जिन पर 2 लाख रुपए से कम राशि व्यय होती है। यह राशि संबंधित पंचायत को उपलब्ध करवा दी गई है। ऐसी बंद योजनाएं, जिनपर 2 लाख रुपए से अधिक राशि के व्यय की संभावना है, उन्हें सुधरवा कर पुन: चालू करवाया जाएगा। ऐसी योजनाओं का संचालन और संधारण दो साल तक करने के बाद ग्राम पंचायतों को चालू स्थिति में हस्तांतरित किया जाएगा। सतही स्रोत आधारित वृहद समूह नल-जल योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए गठित मध्यप्रदेश जल निगम के माध्यम से 17 जिलों में 20 समूह जल-प्रदाय योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इन योजनाओं के क्रियान्वयन से 768 ग्राम की 11 लाख 86 हजार जनसंख्या को लाभ मिलेगा। सरकार के इन तमाम दावों के परिपेक्ष्य में देखें तो प्रदेश में नलजल योजनाओं में लाभन्वित भूमि की आबादी 1.99 करोड़ है। नलजल योजना से लाभान्वित आबादी 38 प्रतिशत है। घरेलू नल कनेक्शन से लाभान्वित आबादी 9.99 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत है 30.80 प्रतिशत है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री का दावा प्रदेश की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं जेल विभाग मंत्री कुसुम मेहदेले का कहना है कि प्रदेश में बंद पाई गईं 3 हजार 474 नल जल योजनाओं को चालू करने के लिए विस्तृत प्राकलन बनाकर शासन स्तर से स्वीकृतियां जारी कर दी गई हैं। वह कहती है कि प्रदेश की कुल 15 हजार 270 नल जल योजनाओं में से सर्वेक्षण के दौरान 3 हजार 474 नल, जल योजनाएं बंद पाई गईं हैं। मेहदेले ने बताया कि बंद नल जल योजनाओं के 2 लाख रूपए लागत तक के कार्य ग्राम पंचायतों के माध्यम से करवाये जा रहे हैं तथा इससे अधिक लागत के कार्य विभाग द्वारा करवाए जाएंगे। इस हेतु पंचायतों को धनराशि भी उपलब्ध करवा दी गई है। बंद नल जल योजनाओं को चालू करने के कार्यों की केन्द्रीकृत निविदा प्रणाली के माध्यम से निविदाएं आमंत्रित की गईं हैं। इन योजनाओं को चालू करने का कार्य 3 माह की अवधि में पूर्ण किया जाएगा तथा 45 दिन के ट्रायल रन के पश्चात 5 वर्ष की अवधि तक संधारण का कार्य भी करवाया जाएगा। वह बताती है कि केन्द्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से आगामी दो वर्ष में पेयजल सुविधा के लिए 900 करोड़ रूपए की व्यवस्था की गई है। इस राशि से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को पीने के पानी के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। यही नहीं प्रदेश के ऐसे नगरीय निकाय जहां भारत सरकार की अमृत योजना और बाह्य पोषित योजना में पेयजल योजनाएं प्रस्तावित नहीं है, ऐसे नगरीय निकाय को मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना में शामिल किया गया है। वह कहती है कि योजना की शुरूआत वर्ष 2012-13 में की गई। कुल 135 नगरीय निकाय में योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस वित्त वर्ष में इस योजना में 122 करोड़ से ज्यादा का बजट प्रावधान है। दृष्टि-पत्र 2018 के अनुसार प्रदेश के सभी नगरों में सतही तथा स्थाई जल-स्त्रोतों से 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित की जाना है। नगरों में पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए यूआईडीएसएसएमटी योजना में 114 शहर में 179 परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं। अपूर्ण योजनाओं को पूर्ण करने के लिए भी 322 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। नीचे से छठवें स्थान पर मप्र मप्र में यहां की आबादी को पेयजल मुहैया कराने के लिए सरकार कितनी संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पेयजल सुविधाएं उपलब्ध कराने में मप्र देश में केवल छत्तीसगढ़, उड़ीसा, असम, झारखंड और बिहार से ही आगे है। यानी मप्र से नीचे से छठवें स्थान पर है। दरअसल, प्रदेश सरकार ने लोगों की प्यास बुझाने के लिए जितनी योजनाएं-परियोजनाएं शुरू कर रखी हैं वे भ्रष्टाचार के कारण अधर में लटकी हुई हैं। सरकार ने वर्ष 2016-17 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत आंशिक पूर्ण 5500 बसाहटों में जल प्रदाय व्यवस्था के लिए 6288.12 लाख रूपए का लक्ष्य रखा था लेकिन जनवरी 2017 तक 6211.62 लाख रूपए खर्च कर 5072 बसाहटों में जलप्रदाय की व्यवस्था हो सकी। इसी तरह 650 ग्रामीण शालाओं के लिए 813.53 लाख रूपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन इस राशि से 629 शालाओं में जलप्रदाय की व्यवस्था हो पाई। 400 ग्रामीण नलजल प्रदाय योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए 10979.41 लाख रूपए का बजट मंजूर किया गया था, लेकिन 10928.64 लाख रूपए खर्च कर 371 योजनाओं का क्रियान्वयन हो सका। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में हैंडपंपों की मरम्मत के लिए 2369.58 लाख रूपए का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 2966.96 लाख रूपए खर्च कर दिए गए। पाईप वाटर सप्लाई योजनाओं की मरम्मत के लिए 2028.19 लाख रूपए का प्रावधान था लेकिन 2379.19 लाख रूपए खर्च कर दिए गए। इन कार्यो के सहित अन्य कार्यों पर जनवरी 2017 तक कुल 29,259.86 लाख रूपए खर्च किए गए। लेकिन इसके बावजुद प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में नलजल योजनाएं अधर में हैं। इसके अलावा मप्र राज्य ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 900 करोड़ रूपए खर्च किए गए, लेकिन प्रदेश में जलसंकट दूर होने का नाम नहीं ले रहा। भ्रष्टाचार में अटकी नलजल योजनाएं प्रदेश में नलजल योजनाओं के पिछड़ेपन और फेल होने का प्रमुख कारण है भ्रष्टाचार। पीएचई के सूत्रों का दावा है कि करीब 70 फीसदी योजनाएं भ्रष्टाचार की जद में हैं। लेकिन न विभाग और न ही सरकार भ्रष्टाचार को लेकर संवेदनशील है। सबसे अधिक भ्रष्टाचार बुंदेलखंड में हुआ है। केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने मप्र में बंदुेलखंड क्षेत्र 6 जिलों के विकास के लिए 3700 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया था। जिसके तहत 9 विभागों द्वारा अलग-अलग विकास कार्य कराए। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग द्वारा 6 जिलों में 100 करोड़ की लागत से 1287 नलजल योजनाएं तैयार की। इनमें से 997 योजनाएं शुरू ही नहीं हो पाईं। सीटीई रिपोर्ट के बाद पीएचई ने बुंदेलखंड पैकेज से जुड़े 15 अफसरों पर आरोप तय कर दिए है। पीएचई के ईएनसी जीएस डामौर ने राज्य सरकार को 100 पेज की रिपोट भेज दी है। जिसमें 78 करोड़ रुपए की बर्बादी के लिए सीधे तौर पर अफसरों को जिम्मेदार बताया है। डामौर ने सरकार को भेजी रिपोर्ट में सागर संभाग के तत्कालीन अधीक्षण यंत्री सीके सिंह समेत 6 जिलों के कार्यपालन यंत्रियों पर आरोप तय किए हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि अफसरों ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत योजनाएं तैयार करने में अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया। यही कारण है कि 1287 में से 997 नलजल योजनाएं पूर्णत: व्यर्थ रही। अफसरों ने न तो सामान की गुणवत्ता परखी, न भौतिक सत्यापन किया, न साइट विजिट की, न ही पाइन लाइन बिजली पंपों की गुणवत्ता परखी। अफसरों ने कार्यालय में बैठकर ही काम पूरा कर दिया। यदि अफसर जिम्मेदारी निभाते तो बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र की तस्वीर बदल गई होती। ईएनसी जीएस डामौर की रिपोर्ट के अनुसार सागर के तत्कालीन अधीक्षण यंत्री सीके सिंह, ईई वीके अहिरवार और अजय जैन, दमोह के ईई विजय सिंह चौहान, एनएस भिडे और एसएल अहिरवार, पन्ना के दिनकर मसूलकर और केपी वर्मा, टीकमगढ़ के एनआर गोडिय़ा और महेन्द्र सिंह, छतरपुर के पीके गुरु, दतिया के एससी कैलासिया, एसएल धुर्वे, हेमू कुवरे और जितेन्द्र मिश्रा को बुंदेलखंड पैकेज में नलजल योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया गया है। ये अधिकारी पूर्व में वहां पदस्थ रह चुके हैं। 12,000 गांवों में सूखे की आहट प्रदेश में नलजल योजनाओं पर हर साल अरबों रूपए खर्च करने के साथ ही सरकार जल संरक्षण के तमाम दावे करती है, लेकिन गर्मी की दस्तक के साथ ही अफसरों और नेताओं के जल संरक्षण के दावे खोखले साबित होने लगते हैं। इस बार भी शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीणों इलाकों तक में तेजी से भूजल स्तर घटने लगा है। नदी और नाले सूखने की कगार पर पहुंच चुके हैं। आने वाले दिनों में यह स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। पीएचई विभाग के अधिकारियों का मानना है कि जल संरक्षण की दिशा में ठोस प्रयास नहीं होने के कारण उम्मीद के अनुरूप वर्षा ऋतु का पानी सहेज नहीं पाए। मप्र की नलजल योजनाओं में भ्रष्टाचार, विभागीय लेतलाली, जल स्रोतों के दोहन, नदियों में अवैध खनन के कारण प्रदेश में जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है। इससे प्रदेश सरकार के साथ ही नगरीय निकाय और पंचायतों में अभी से घबराहट होने लगी है। आलम यह है कि प्रदेश में पानी की मुख्य स्रोत जो नदियां हैं उनका जल स्तर तेजी से कम हो रहा है। नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध, शिवना और बेनगंगा आदि नदियों के किनारे स्थित करीब 12,000 गांवों अभी से पानी की किल्लत शुरू हो गई है। जानकारों का कहना है कि मई-जून में स्थिति विकट हो सकती है। मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार, नदियों में पर्यावरणीय नियमों को ताक पर रखकर जिस तरह मशीनों से नदियों की तलहटी में खुदाई कर रेत निकाली जा रही है, उससे नदियों की जल रोधक परते क्षतिग्रस्त हो गई हैं। इस कारण नदियों का पानी भूगर्भ में समा रहा है। साथ ही अधिकांश नदियों का पानी मैदानी इलाकों में पहुंचने की बजाय बांध और डैम में कैद होकर रह जाता है। इससे एक बड़ी आबादी के सामने जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। आलम यह है कि सोन, सिन्ध, चम्बल, केन, शिप्रा, काली सिंध, बेन गंगाा आदि नदियों के क्षेत्र 48 फीसदी कुओं का भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। इस कारण करीब 12,000 गांवों में सूखे की संभावना बढ़ गई है। अवैध खनन और दोहन से गिरा भूजल स्तर मप्र में माफिया और प्रशासन ने मिलीभगत से केन, सोन, ताप्ती, चंबल, शिवना, बेनगंगा, नर्मदा सहित अन्य नदियों को मशीनों से इस कदर खोदा है की नदियों का पारिस्थितकीय संतुलन ही बिगड़ गया है। इसका असर यह हो रहा है कि पिछले साल रिकार्ड बारिश के बाद भी नदियों का पेट खाली हो गया है। प्रदेश की बड़ी नदियों की सहायक नदियां तो पूरी तरह सूख गई हैं या फिर नाला बनकर रह गई हैं। मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार, लगातार दोहन के कारण प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में दिनों दिन भूजल स्तर गिर रहा है। जैसे-जैसे पारा ऊपर चढ़ रहा है। वैसे ही भूजल स्तर तेजी से पालात की ओर जाने लगा है। इस साल अभी तक कुछ जिलों में जलस्तर 45 से 62 मीटर तक नीचे खिसक चुका है। भूजल स्तर इसी तेजी से गिरता रहा तो गर्मी के मई-जून माह में लोगों को गंभीर पेयजल संकट से जूझना पड़ सकता है। जिन जिलों में तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है उनमें रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, डिंडौरी, जबलपुर, कटनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, नरसिंहपुर, मंडला, सागर, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर, रायसेन, विदिशा, दमोह, सिहोर, ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, भिंड, मुरैना, श्योपुर, इंदौर, धार, मंदसौर, उज्जैन शाजापुर, देवास, रतलाम, खंडवा, बुरहानपुर, बडवानी, झाबुआ और अलीराजपुर जिले हैं। ये जिले इस बार सूखे की चपेट में आ सकते हैं। पहली लेयर का पानी खत्म प्रदेश में नदियों में अवैध खनन का असर यह हुआ है कि प्रदेश के अधिकांश जिलों में भूजल स्तर की पहली लेयर जो 35 मीटर की होती है उसका पानी अब खत्म हो चुका है। वर्तमान में 70 मीटर वाली दूसरी लेयर का पानी हैंडपंपों और नलकूपों के माध्यम से मिल रहा है। गर्मी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पेयजल संकट का समाना करना पड़ सकता है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश के 1031 विशेषित कुओं में से 555 (48 प्रतिशत कुओं में भूजल का स्तर गिरा है। चौकाने वाले रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2.13 मीटर प्रति वर्ष की दर से सूबे के कुओं में भूजल का स्तर में गिरावट हो रहा है। केन, सोन, ताप्ती, चंबल, शिवना, बेनगंगा, नर्मदा सहित अन्य नदियों के किनारे के गांवों के लोग आत्मघाती कदम उठाए हुए हैं। खनिज माफिया के बहकावे में आकर जिस नदी की कोख से रेत निकाल रहे हैं, वहीं रेत उनके लिए भयानक आपदा लेकर आने वाला है। अधिकांश नदियों का बेड (जल बहाव की सतह) कई स्थानों पर सामान्य से तीन मीटर तक नीचे चली गई है, जिससे नदियों की गहराई तेजी से बढ़ी है। इससे कई जगह पर नदियां कुंआ तो कई जगह उथली हो गई हैं। यह आने वाले संकट का संकेत है। विधानसभा में भी सूखे की चिंता प्रदेश में गर्मी की दस्तक ने विधायकों के भी माथे पर एक बार फिर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। पिछले साल जब गर्मी से जनता हलाकान थी, तब नल-जल योजना में भारी भ्रष्टाचार उजागर हुआ था। खूब हंगामा मचा और योजना को ग्रामीण विकास से लेकर पीएचई को देना तय हुआ, लेकिन साल बीत गया। फिर गर्मी आ गई और न योजना का विभाग बदला और न ही हालात। अभी भी नल-जल योजना के तहत 40 फीसदी से ज्यादा हैंडपंप खराब हैं। विधायकों को चिंता है कि क्षेत्र में जनता को क्या जवाब देंगे। इसलिए विधानसभा में नल-जल को लेकर फिर प्रश्नों की बौछार की है। पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने सरकार को आइना दिखाने की कोशिश की है। बावजूद इसके सरकार के पास आश्वासनों के अलावा कोई दूसरा हल अभी भी नजर नहीं दिखता। कांग्रेस विधायक बाला बच्चन का कहना है कि सरकार ने पेयजल को लेकर कोई काम नहीं किया है। नल-जल योजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ था और अभी भी हो रहा है। सरकार को पेयजल पर खर्च का पूरा हिसाब देना चाहिए। कांग्रेस विधायक कमलेश्वर पटेल कहते हैं कि ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में नल-जल योजना के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ है। हैंडपंप सूखे हैं और नए नलकूप खोदने के नाम पर भी अधिकारी पैसे खा गए। कही भी काम नहीं हुआ है। दरअसल, नल-जल योजना में 100 करोड़ का भ्रष्टाचार उजागर हुआ था। गांवों में हैंडपंप, कुंआ, तालाब व अन्य पेयजल-स्त्रोत के हालात खराब मिले थे। पीएचई मंत्री कुसुम मेहदेले ने इसकी जिम्मेदारी ग्रामीण विकास पर डाली, तो कैबिनेट में ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने इस योजना को तुरंत पीएचई को देने का कहा था। बाद में विधानसभा सत्र में भी मंत्री भार्गव ने योजना का विभाग बदलने की बात कही। पीएचई मंत्री ने इस पर कई बैठकें की थी। बाद में ग्रामीण विकास ने और बजट जारी किया था। 60 से ज्यादा विधायकों ने विधानसभा में सीधे तौर पर पेयजल के तहत नल-जल योजना को लेकर सवाल लगाए हैं। इन विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में हैंडपंपों की स्थिति की जानकारी चाही है। गर्मी को देखते हुए वैकल्पिक इंतजाम और पिछली गर्मी के बाद से अब तक किए कामों का हिसाब सरकार से मांगा है। ज्यादातर सवाल विधानसभा क्षेत्र से संबंधित है इस कारण सरकार ने टुकड़ों में जानकारी दी है। बावजूद इसके राज्य स्तर पर देखे तो पिछली गर्मी से अभी तक हालत वैसे ही हैं। नल-जल योजनाएं बंद या अधूरी पड़ी है। इसलिए इस गर्मी भी सरकार को विधायकों का और विधायकों को जनता का आक्रोश झेलना होगा। सदन में विधायकों के सवाल -इंदर सिंह परमार: शाजापुर में पेजयल संकट का स्थाई समाधान के लिए क्या-क्या प्रावधान? वैकल्पिक योजना क्या? -सतीश मालवीय: उज्जैन-घट्टिया में कपिलधारा में कितने कुएं मंजूर, कितने काम अधूरे और कब पूरे होंगे? -मुकेश सिंह चतुर्वेदी: क्या नल-जल योजना को फिर चालू करने के आदेश दिए, भिंड में कितनी चालू और कितनी बंद? -चंद्रशेखर देशमुख: मुलाई में पेयजल के लिए कितनी राशि वसूली, कितना काम हुआ अब तक? -रामपाल सिंह: शहडोल-ब्यौहारी में पेयजल के लिए ओवरहेड टैंक कितने चालू, जलप्रदाय कब से होगा? -रामसिंह यादव: कोलारस में जनवरी तक कितने व कहां हैंडपंप व नल-जल योजना बंद, चालू कब होगी? -मुकेश नायक: शाहनगर-पवई में बुंदेलखंड पैकेज के तहत कितनी नल-जल योजना, कितना खर्च, कितनी चालू? -दुर्गालाल विजय: श्योपुर में 280 गांव पेयजल संकट में। चंबल से पेयजल आपूर्ति का प्रथम चरण कब शुरू? -चंदा सुरेंद्र सिंह गौर: खरगापुर में 47 समूह जलप्रदाय योजना में क्या 2018 तक जल उपलब्ध कराया जाएगा? -योगिता नवलसिंग बोरकर: पंधाना में 48 लाख की पेयजल योजना मंजूर, पर काम नहीं, काम कब होगा? -अमर सिंह यादव: राजगढ़ में कितने हैंडपंप मंजूर, कितने चालू कितने बंद, क्या 200 नए हैंडपंप मंजूर होंगे? -सत्यपाल सिंह सिकरवार: सुमावली में कितनी नल-जल योजना चालू नहीं, कब से क्यों बंद, कब शुरू होगी? -उमादेवी खटीक: दमोह-हटा में कितनी नल-जल योजना, बंद का कब निरीक्षण, दोषियों पर क्या कार्रवाई? -लाखनसिंह यादव: भितरवार में जनवरी तक कितने हैंडपंप चालू-बंद, सुधार कब, दोषियों पर क्या कार्रवाई? -फुंदेलाल मार्को: कितने जिले-तहसील सूखाग्रस्त, पेयजल के लिए कितनी राशि दी, सूखा राहत के क्या काम? -कुंवर सिंह टेकाम: सीधी-धौहनी में नल-जल योजना में मरम्मत का कितना काम हुआ, कब चालू होंगे? -प्रदीप जायसवाल: नल-जल योजना में कितने नलकूप खनन, मुडवारा में कितने सफल-असफल, क्या कार्रवाई?

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