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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

शराब पर पाबंदी कितनी कारगर?

चांद पर बस्ती बसाने का सपना देखने जा रहे भारत में शराबबंदी एक ऐसी कसरत है, जिसे शुरू करने के बाद हर राज्य सरकार का दम फूलने लगता है। बिहार में शराबबंदी के बाद से देश में इनदिनों शराब पर पाबंदी की हवा-सी चल पड़ है। कहा जा रहा है इससे अपराध रूकेंगे, सड़क दुर्घटनाएं कम होंगी। इन्हीं तर्को के आधार पर मप्र में भी शराबबंदी की हवा-सी चल पड़ी है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है क्या जिन राज्यों में शराबबंदी है वहां अपराधों पर अंकुश लग गया है, क्या सड़क दुर्घटनाएं रूक गई हैं, क्या पति-पत्नी के झगड़े बंद हो गए हैं या फिर लोगों ने शराब पीना बंद कर दिया है? इन सबका जवाब है ना। क्योंकि शराबबंदी राजनीति में वोट जुटाने का नया हथकंडा बनी है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार शराबबंदी के बहाने बिहार समेत पूरे देश में अभियान चला रहे हैं तो बाकी राज्यों में भी अब शराब पर पाबंदी की आवाजें उठने लगी हैं। सत्य यह है कि देश में पाबंदियों की भरमार है किन्तु एक भी पाबंदी सौ प्रतिशत सफल नहीं है। पाबंदी तो नर-हत्या पर भी है, गौ-हत्या पर भी है, नारी-शोषण, बलात्कार और जाने कितनी और बुरी बातों पर भी है। क्या वे सब बंद हो गयीं? पाबंदी इलाज नहीं रोक-थाम का हिस्सा है। शराब पर पाबंदी होते ही शराबखोरी चोरी-छिपे और तेजी से चल पड़ती है। बिहार से पहले कई राज्यों में पूर्ण शराबबंदी की पहल हुई लेकिन यह गुजरात को छोड़कर किसी राज्य में बरकरार नहीं रह सकी। अभी बिहार के साथ गुजरात, केरल और लक्षद्वीप में पूरी तरह शराबबंदी है। मणिपुर और नगालैंड में आंशिक बंदी है। हालांकि इससे पहले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा जैसे राज्यों ने भी शराबबंदी लागू करने की कोशिश की थी लेकिन ज्यादा सफल नहीं रहने की वजह से बाद में इस पाबंदी को वापस ले लिया गया। 18 साल बाद मिजोरम में 2016 के शुरू में इस बंदी को हटा दिया गया। आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की राजनीति में एंट्री इसी मुद्दे पर हुई थी। शराबबंदी पर आंदोलन चलाकर वह लोकप्रिय हुए और सत्ता में आए। आने के बाद शराबबंदी भी की लेकिन बाद में उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने सत्ता में आने पर इस पाबंदी को हटा दिया था। इसी तरह बिहार में 1977 में कर्पूरी ठाकुर और 1996 में हरियाणा में बंसीलाल शराबबंदी की घोषणा कर लोकप्रिय हुए थे लेकिन बाद में दोनों राज्यों में प्रयोग नाकाम रहा और शराबंदी को हटा लिया गया। अमेरिका में भी हुआ था प्रयोग ऐसा नहीं है कि शराबबंदी का प्रयोग सिर्फ भारत में हुआ। शराब के कारण अपराध बढऩे का तर्क देकर अमेरिका में भी 1920 से 1933 के बीच शराबबंदी का प्रयोग किया गया। लेकिन यह कोशिश न सिर्फ नाकाम रही, बल्कि इस दौरान अपराध और बढ़ गए। यूरोप और दक्षिण अमेरिका के कुछ छोटे-छोटे राज्यों में भी ऐसी कोशिशें हुईं लेकिन ग्लोबल स्तर पर कहीं भी शराबबंदी के पूरी तरह से सफल होने का कोई बड़ा मॉडल सामने नहीं है। आसान नहीं रोकना पिछले तमाम मामलों से यह साफ है कि शराबबंदी लागू करना आसान नहीं है। खुद वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट कहती है कि लगभग 60 फीसदी लत वाले मामले तो कहीं दर्ज ही नहीं होते। ऐसे में इन्हें रोकना इस बंदी से संभव नहीं है। साथ ही इसके बाद शराब की तस्करी और इससे जुड़े अपराध बढ़ गए। राज्यों को इतना आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है कि दूसरे विकास काम ठप पडऩे लगते हैं। आंध्र प्रदेश में तो शराबबंदी के चक्कर में गरीबों को मुफ्त चावल की योजना रोकनी पड़ी थी। बने राष्ट्रीय नीति शराबबंदी बहुत अच्छा कदम है लेकिन पूरी इच्छाशक्ति से इसे लागू करने से ही इसके नतीजे सामने आ सकते हैं। किसी एक राज्य में लागू करने में दिक्कत यह है कि लोग दूसरे राज्य से अवैध तरीके से शराब ले आते हैं इसलिए इसके लिए राष्ट्रीय नीति जरूरी है। पहले शराब की बिक्री और इसके इस्तेमाल को रेगुलेट किया जाना चाहिए और फिर धीरे-धीरे शराबबंदी की ओर बढऩा चाहिए। शराब की बिक्री पर जो इंसेंटिव दिया जा रहा है, वह भी देखना होगा। मसलन हरियाणा में प्रति बोतल बिक्री पर पंचायत को 5 रुपये दिए जाते हैं। हरियाणा में तो पहले शराबंदी लागू थी लेकिन नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने शराब लॉबी को सपोर्ट किया और अवैध बिक्री को रोकने में इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। शराबबंदी लागू करने से पहले लोगों को इस बारे में जागरूक करना भी जरूरी है। यह भी देखना होगा कि लोग इतना ज्यादा शराब क्यों पीते हैं? शराबबंदी के साइड इफेक्ट्स बिहार में शराबबंदी के साइड इफेक्ट्स भी दिखने लगे हैं। भले शराब की बिक्री बंद हो लेकिन नशेबाज अब उसके विकल्प की तलाश में जुट गए हैं। इसका असर यह हुआ कि वहां गांजा, भांग, चरस और अफीम की अवैध सप्लाई तेजी से बढ़ी है। बिहार में शराब बंदी के बाद स्कूल बैग्स में शराब की बोतल मिलने के मामले सामने आए हैं। घरेलू शराब पीने से गोपाल गंज में कई दर्जन लोग मर चुके हैं। बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी ऐसा ट्रेंड देखा गया है। फिर लोग अक्सर जहरीली शराब का भी शिकार होते हैं। एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार से ज्यादा गुजरात में औरतों के विरूद्ध अपराध होते हैं। पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में करीब 5 हजार करोड़ का अवैध शराब का कारोबार है। इनके लिए सबसे मुफीद शराबबंदी वाले राज्य होते हैं। ऐसा ही गुजरात में हुआ था, जहां राज्य से लगी राजस्थान और महाराष्ट्र की सीमा पर अवैध शराब की सप्लाई बढ़ गई थी। बिहार में बंदी के बाद झारखंड, यूपी और नेपाल के करीबी इलाकों में इसकी तस्करी बढ़ गई है। शराब की तस्करी बढऩे पर इसे रोकने का दबाव बढ़ जाता है। शराबबंदी से सरकार की आमदनी पर असर पड़ता है। इससे विकास के काम प्रभावित होते हैं। आंध्र प्रदेश और हरियाणा में बैन इसी कारण हटे थे। केरल में बंदी के बाद टूरिजम तक प्रभावित हो गया। बंदी के कारण तस्करी बढ़ जाती है। अवैध शराब की बिक्री बढ़ जाती है और जहरीली शराब की भी एंट्री होती है। गुजरात में बंदी के बाद जहरीली शराब से मौत की कई घटनाएं हुई हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार अब तक अवैध शराब से पिछले 10 बरसों में करीब 2 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। शराब बंदी के फैसलों की हकीकत भारत के कई राज्यों में यह योजना लागू किया गया लेकिन राज्य सराकारों को पूरी तरह से कामयाबी हासिल नहीं हुई। तो किसी राज्य में कामयाबी भी मिली, और कई राज्य तो ऐसे भी है जहां कानूनी तौर पर तो शराब पर प्रतिबंध है लेकिन वहा शराब आप के लिए आसानी से उपलब्ध हो सकता है। अपनी कुदरती खूबसूरती के लिए मशहूर केरल राज्य ने भी अगस्त 2014 से राज्य में शराब पर प्रतिबंध की घोषणा की थी, लेकिन सरकार के इस फैसले को बार और होटल मालिकों ने चुनौती दी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले को बहाल रखा और सिर्फ पांच सितारा होटलों में ही शराब की इजाजत दी। केरल में वर्ष 2016 में अल्कोहल उपभोग को वहां के मुख्यमंत्री ने आधार कार्ड से जोड़ते हुए प्रति सप्ताह 14 यूनिट अल्कोहल उपभोग की अनुमति दी है। लक्ष्यदीप में शराब बंदी है लेकिन बंगाराम भर में पी सकते हैं। नागालैंड में भी शराब बंदी है लेकिन वहां अवैध शराब का धंधा जोरों पर है। बिहार से पहले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में भी शराब पर प्रतिबंध की घोषणा की गई लेकिन यह ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई। क्योंकि ज्यादातर सरकारों ने राज्य की महिलाओं की मांग को देखते हुए शराब पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, लेकिन बाद में उन्ही महिलाओं ने इस प्रतिबंध को हटाने की मांग रखी। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने यह कह कर शराबबंदी हटा दी, कि इसे पूरी तरह लागू कर पाना संभव नहीं है। तो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भी कहा कि पूरी तरह से शराबबंदी कानून लागू करना संभव नहीं है। हालांकि उन्होंने पहले कहा था कि चाहे मुझे घास काटनी क्यों न पड़ जाए शराब से प्रतिबंध नहीं हटेगा। शराबबंदी कानून के बाद बंसीलाल को तो कई राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। हरियाणा में तो शराबबंदी कानून लागू करने के लगभग 21 महिने बाद(हरियाणा में भी 1996 से 1998 के दौरान मद्यनिषेध लागु किया गया) ही सरकार के हाथ-पांव फूलने लगे थे। राज्य में एक ओर अवैध तस्करी के कई मामले सामने आए वहीं जहरीली शराब पीने से लगभग 60 लोगों की मौत हो गई थी। गुजरात में 1960 से ही शराब पर प्रतिबंध है, लेकिन एक कहावत भी तो है जहां चाह वही राह, इस नीति को अपनाते हुए गुजारत में शराब बंदी के बावजूद लोगों को शराब आसानी से उपलब्ध हो जाता है। तो केरल सरकार के शराब बंदी फैसले को सर्वोच्च न्यायल में रखने के बाद राज्य में पांच सितारा होटलों में शराब की इजाजत दी गई है। एनसीआरबी के आंकड़े भी बताते हैं कि शराब बंदी से सड़क हादसों पर लगाम नहीं लगती है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार देश में 4.2 प्रतिशत हादसे शराब के कारण हुए हैं जबकि 47.9 प्रतिशत ओवर लोडिंग के कारण हुए हैं। यही नहीं शराब बंदी वाले राज्य गुजरात में जहां सड़क दुर्घटना हर साल 8 हजार लोग मरते हैं। वही मप्र में 2 हजार। बगैर कानून तोड़े इन राज्यों में ऐसे मिलती है शराब! विभिन्न राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाने के बाद बनी सूरत अलग अलग है। बिहार सरकार ने तो शराबबंदी लागू कर दी लेकिन क्या वाकई शराब बंद हुआ। देश में बिहार के अलावा गुजरात, और नागालैंड भी ऐसे राज्य हैं जहां पूर्णशराब बंदी है और फिर महाराष्ट्र में भी विशेष कानून हैं। केरल भी शराबबंदी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की प्रतिबद्धता जता चुका है। वहां फाइव स्टार होटलों और रेस्तरां में शराब बिक्री पर बैन लग चुका है। लेकिन इन तमाम कानूनों के बावजूद पीने वालों की इच्छा पर कोई लगाम नहीं लगा सका। बिहार- मदिरा प्रेमियों को तो बस पीने से मतलब होता है। आप लाख कानून बना दीजिए। तरीका वे खुद खोज लेते हैं। बिहार में खुलेआम शराब बिकनी बंद हो गई तो क्या, महफिलें अब भी यहां जमती हैं। पड़ोसी देश नेपाल और फिर दूसरे राज्यों जैसे यूपी और झारखंड से इनकी पूर्ति होने लगी है। पड़ोस के राज्यों से सटे लोग केवल पीने के लिए दो-तीन घंटे के सफर से नहीं हिचकते। यही नहीं, चोरी-छिपे शराब को राज्य में लाने का खेल भी खूब हो रहा है। एक पूरा नेटवर्क तैयार हो गया है जो आपकी डिमांड पूरी कर देगा। आपको बस अपनी जेब ढिली करने की जरूरत है। पीने-पिलाने वाले शौकिन लोगों के घरों में स्टॉक भी जमा है। खत्म हुआ तो दूसरी खेप आ जाएगी। नागालैंड- इस राज्य में भी 1989 से शराबबंदी लागू है। यहां के कानून के मुताबिक शराब बिक्री से लेकर उसे बनाने, पीने-पिलाने या अखबारों में उसके बारे में विज्ञापन देने पर रोक है। लेकिन विभिन्न मीडिया रिपोट्र्स की कहानी कुछ और ही सच बयां करती है। पूरे राज्य में गैरकानूनी बार और शराब की दुकानें तक मौजूद हैं। पड़ोसी असम से शराब की तस्करी भी खूब होती है। गुजरात- देश की आजादी से पहले कई राज्यों में शराब पर बैन था। गुजरात भी इनमें से एक है। तब ये बॉम्बे स्टेट के अंदर आता था। 1960 में अलग होने के बावजूद गुजरात ने शराबबंदी को लागू रखा। लेकिन अब तो यही कहा जाता है कि यहां शराब बहुत आसानी से उपलब्ध है। इतनी आसानी से कि आपके घर भी इसकी डिलिवरी हो जाएगी। बस, ऑर्डर दीजिए। गुजरात में एक और प्रथा खूब प्रचलन में है। आपके पास अगर परमिट है, मतलब वो मेडिकल सर्टिफिकेट जिसमें कहा जाए कि शराब आपके लिए जरूरी है, तो फिर चांदी ही चांदी। आपकी सारी समस्या हल हो जाएगी। परमिट के लिए कोटा तय है और एक बैन स्टेट में उतना ही मिल जाए, तो क्या बुरा है। ये फर्जीवाड़ा भी वहां खूब होता है। लेकिन कई लोग प्रतिबंध को सिर्फ कागजों पर मानते हैं। सरकारी के आंकड़ों के मुताबिक ही पिछले पांच सालों में वहां 2500 करोड़ रुपए की अवैध शराब जब्त हुई। अवैध शराब की बिक्री से कई लोग इस कदर परेशान हैं कि उत्तर गुजरात में ठाकोर समुदाय के गैरकानूनी शराब के ठेकों पर जनता ने छापेमारी शुरू कर दी है। पिछले चार महीने में इस तरह के छापे 800 जगहों पर मारे गए हैं। शराबबंदी को लागू करवाने की जिम्मेदारी भी पुलिस पर ही है। राज्य में कुल 60,000 पुलिसकर्मी हैं। गुजरात में गैरकानूनी ढंग से शराब पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दीव और दमन से आती है। गैरकानूनी जहरीली पीने से राज्य में अब तक 3,000 लोगों की मौत हुई है। साल 2008 में अहमदाबाद में हुई एक बड़ी दुर्घटना में शराब पीने से 150 लोग मारे गए थे। इसके बाद कानून में संशोधन किया गया और जहरीली शराब से मौत होने पर दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया। लेकिन सूबे में आजतक एक भी शराब बेचने वाले या पीने वाले को सजा नहीं हुई है। स्वास्थ्य कारण बताकर सूबे में शराब पीने का परमिट मिल सकता है, जिसे हेल्थ परमिट कहते हैं। राज्य की छह करोड़ की आबादी में से 55,000 के पास ऐसा हेल्थ परमिट है। पूरे राज्य में शराब की बिक्री करने वाली सिर्फ 60 दुकानें हैं। महाराष्ट्र- यहां की कहानी और भी दिलचस्प है। क्या आपको पता है कि अगर आप मुंबई के किसी पब में शराब पी रहे हैं तो आप एक गैरकानूनी काम कर रहे हैं। बॉम्बे प्रोहिबिश्न एक्ट-1949 के अनुसार शराब पीने के लिए आपके पास सरकारी परमिट होना जरूरी है। लेकिन परमिट के पीछे कौन भागे। तो जाहिर है, अगर आप जाम का मजा ले रहे हैं तो उसका बिल किसी और के नाम पर फाड़ा जा रहा है। इसका मतलब परमिट फर्जी और जिनके नाम पर बने होंगे वो नाम भी फर्जी होंगे। कागज पर सब ठीक लगे इसलिए ये सारे जतन किए जाते है। जबकि सच्चाई पुलिस से लेकर प्रशासन को पता न हो, ऐसा मुमकिन नहीं। 1960 में गुजरात और महाराष्ट्र जब अलग हुए तो शराबबंदी संबंधी नियमों में यहां ढील दी गई। 1972 में इस बैन को पूरी तरह से हटा दिया गया और इसकी जगह परमिट सिस्टम को लाया गया। हालांकि, महात्मा गांधी से गहरे रिश्ते के कारण महाराष्ट्र के वर्धा जिले में शराब पर अब भी पूर्ण प्रतिबंध है। कारगर शराब नीति नहीं भारत शराब के विरुद्ध आवाज उठाने वाला दुनिया का पहला देश है लेकिन आज तक वह एक कारगर शराब नीति नहीं बना सका है। 2007 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने शराब की बिक्री पर कठोर प्रतिबंध, फिल्मों में शराब के दृश्य दिखाने पर पाबंदी आदि का प्रस्ताव तैयार किया था लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने शराब-विरोधी नीति बनाने का काम सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के जिम्मे छोड़ दिया है। जैसे-जैसे शराब की पाबंदी पर सरकार की उदासीनता बढ़ रही है वैसे-वैसे शराब की खपत बढ़ती जा रही है। अब तो शराब पीने की औसत आयु भी तेजी से घट रही है। 1990 में देश में शराब पीने की औसत उम्र अ_ाईस साल थी, जिसके अब महज पंद्रह साल रह जाने का अनुमान है। देश में विशाल मध्य वर्ग, लोगों की बढ़ती आमदनी, आधुनिक जीवन शैली, तनाव, एकाकीपन, युवा आबादी के कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर निकलने, घटती सामाजिकता और बढ़ता शहरीकरण शराब की खपत बढ़ाने में खाद-पानी का काम कर रहे हैं। क्या शराबबंदी से अपराध रुक जाएंगे शराब बंदी के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे अपराध रूकेंगे। लेकिन शराब बंदी वाले राज्यों की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता कि वहां इसका असर पड़ा है। अपराध तथा भ्रष्टाचार कम करने, सामाजिक समस्याओं को सुलझाने, जेलों तथा गरीबों के लिए आश्रयों द्वारा पैदा करों के बोझ को घटाने और स्वास्थ्य तथा साफ-सफाई में सुधार करने के लिए अमरीका ने नैशनल प्रोहिबिशन ऑफ एल्कोहल (1920-33) लागू किया। इस प्रयोग के परिणाम स्पष्ट संकेत देते हैं कि यह सब बुरी तरह असफल हुआ। शराबबंदी कानून का मतलब यह नहीं कि लोग पीना छोड़ देंगे। वे ऐसा करने के लिए अन्य रास्ते ढूंढ लेंगे जैसे कि पीने के लिए पड़ोसी राज्यों में जाना अथवा एल्कोहल संग्रह करने के लिए अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करना। यह महज एक असंभव कार्य को करने के लिए लोगों की शक्ति को व्यर्थ करना है जिससे भ्रष्टाचार के अन्य रास्ते खुलेंगे। बिहार के प्राय: हर शहर में शराब महंगी कीमत पर उपलब्ध है। पुलिस और माफिया की मिलीभगत से यह चेन विकसित हो रहा है। यूपी बॉर्डर, झारखंड बॉर्डर से लेकर नेपाल बॉर्डर तक इस धंधे की आहट सुनाई पड़ सकती है। दूसरी ओर, जब से कानून में इस बात का प्रावधान हुआ है कि किसी के घर में शराब मिलने पर उस घर के सभी बालिगों को भी दोषी माना जाएगा और आरंभिक स्तर पर पूछताछ की जाएगी तब से कई लोग एक-दूसरे से दुश्मनी निकालने की योजना बना रहे हैं। बिहार में आपसी रंजिश में एक-दूसरे के घर में हथियार रखवा देने का इतिहास लोग जानते हैं। दो दशक पहले तक हथियार को एक-दूसरे के घर में रखकर लोग अपनी दुश्मनी साधते थे। शराब हथियार से ज्यादा आसान चीज है। राज्य के ताकतवर लोगों के लिए शराब आसानी से उपलब्ध है। कमजोर लोगों के लिए भी मेहनत करने पर शराब उपलब्ध है। चूंकि शराबबंदी का यह कानून पुलिसवालों पर निर्भर है, इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि आखिरकार ताकतवरों की ही चलेगी। अब किसी भी कमजोर को फंसाने के लिए उसके घर, अहाते में शराब रखवाने या फेंकने का काम चलेगा। शराब रखवाना और फिर पुलिस को इत्तला करके उन्हें फंसा देने का काम आसान हो जाएगा। जो बड़े लोग होंगे वे पुलिस को मैनेज करेंगे, जो कमजोर होंगे वे बड़े लोगों के गुलाम होंगे, क्योंकि अब पुलिस का इस्तेमाल करके किसी कमजोर को फंसाना पहले की तरह मुश्किल भी नहीं होगा। शराबबंदी का कानून कड़ा है। अब तक यह देखा भी जा रहा है कि शराबबंदी के फेर में जो भी पुलिस के हत्थे चढ़ रहे हैं वे गरीब और आर्थिक तौर पर कमजोर लोग ही हैं या वंचित समूह के लोग हैं। अभी यह आलम है तो ट्रायल फेज के बाद जब यह कानून थोड़ा पुराना हो जाएगा तो फिर इस प्रवृत्ति का और विस्तार ही होगा। बिहार में शराबबंदी के बाद बड़े अपराध बिहार में शराबबंदी के अब नौ महीने से अधिक का समय हो गया हैं, लेकिन बिहार पुलिस के अपराध रिकॉर्ड के आधार पर कहा है कि अप्रैल से अक्टूबर, 2016 के बीच संज्ञेय अपराधों में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। अप्रैल में जहां ऐसे अपराधों की संख्या 14,279 थी, जिनकी जांच के लिए पुलिस को दंडाधिकारी के आदेश की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं अक्टूबर में यह संख्या बढ़कर 16,153 हो गई। दूसरे शब्दों में कहें तो शराबबंदी का अपराध में कमी से कोई संबंध नहीं दिखाई देता। गौरतलब है कि पटना उच्च न्यायालय ने शराबबंदी को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार से वंचित करने वाला बताया था। शराबबंदी के दौरान हत्या, दुष्कर्म, अपहरण और दंगे-फसाद जैसे संगीन अपराधों में वृद्धि हुई है। पटना उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2016 में शराबबंदी के फैसले को रद्द कर दिया था और बिहार आबकारी (संशोधन) विधेयक-2016 को अवैध करार दिया था। नए विधेयक में शराब का भंडार करने या सेवन करने का अपराधी पाए जाने पर परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के खिलाफ जेल की सजा का प्रावधान रखा गया था। जागरूकता से रूक सकती है शराबखोरी विश्व में कहीं भी नैतिकता को कानूनी रूप देने में सफलता नहीं मिली और न ही इससे पापी संत बने हैं। इसकी बजाय इससे पहले से ही मौजूद समस्याओं में और वृद्धि हुई है। इससे न तो समस्याओं का समाधान होगा और न ही उनकी आवृत्ति कम होगी, बल्कि शराब पीने वाले और रास्ते निकाल लेंगे। इससे केवल अवैध शराब निकालने वालों, अपराधियों तथा सरकार में शक्तिशाली लोगों को ही फायदा पहुंचेगा। इससे प्रशासन की लागत और बढ़ेगी। देश की समस्या शराब पीना नहीं वरन् शराबखोरी है। जिसके प्रति हम गम्भीर नहीं हैं। हम हर काम प्रचार के लिए करते हैं। शराबबंदी हो ही नहीं सकती, यह तो इन्सान की फितरत में दाखिल है। ऐसा करने से गैर-कानूनी शराब को बढ़ावा मिलेगा। गांवों में मनोरंजन के पयाप्र्त साधन नहीं हैं। युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा। लोग कुंठा का शिकार होते हैं तो नशाखोरी की तरफ जाते हैं। 2 चीजों पर खास ध्यान देना चाहिए - एक तो शराब उपलब्ध न हो और दूसरा लोगों को इसकी जरूरत ही महसूस न हो। बिहार में नीतीश सरकार ने केवल शराब बंदी का एलान नही बल्कि राज्य में नेताओं पुलिस कर्मियों को आजीवन शराब न पीने की शपथ भी दिलाई है। यह इस दिशा में एक कारगर तरीका है। इसी तरह स्कूल की किताबों में नशा के खिलाफ पाठ होना चाहिए। हर जिला अस्पताल में नशा खोरी करने वालों का इलाज करने के लिए एक सेंटर होना चाहिए। नशा रोकने के लिए सूचना और रोचक कथाओं का प्रसार होना चाहिए। धार्मिक संत महात्माओं के प्रवचन होने चाहिए। सरकार का काम प्रशासन चलाना होना चाहिए न कि व्यक्ति को यह बताना कि उसके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। तमिलनाडु, मिजोरम, हरियाणा, नागालैंड, मणिपुर, लक्षद्वीप, कर्नाटक तथा कुछ अन्य राज्यों ने ऐसा प्रयोग किया, शराबबंदी हटाई, फिर लागू कर दी जिससे राज्य के राजस्व को विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़े जबकि समस्या में जरा-सा भी सुधार नहीं हुआ। इस नीति का लाभ सिर्फ इसे लागू करने वाली एजेंसियों तथा अवैध शराब बनाने वालों को पहुंचा जिन्होंने खूब धन कमाया। शराब को अपराधों की जड़ माना जाता है। जबकि देखा जाए तो मुंबई में गैंगस्टर हफ्ता वसूली से अपराध की शुरूआत करते हैं। वहीं यूपी में अपहरण सबसे बड़ा धंधा है। इसी तरह अन्य राज्यों में भी अपराध के अलग-अलग तरीके हैं। जिनका शराब खोरी से कोई वास्ता नहीं। इसलिए यह कल्पना करना की शराब बंदी से अपराध कम होंगे कोरी कल्पना है। नशा नाश का कारण है इसलिए सभी तरह का नशा बंद होना चाहिए। यह जागरूकता से ही हो सकता है। बंदी से नहीं। बंदी से अपराध बढ़ते हैं।

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