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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

शिव 'राजÓ की रिपोर्ट खराब

60 फीसदी सीटों पर नए चेहरे की जुगाड़
- संघ की रिपोर्ट के बाद अब सरकारी सर्वे में सामने आया हाल
भोपाल। मप्र में लगातार चौथी बार सरकार बनाने के सपने देख रही भाजपा के विधायक ही नहीं, मंत्रियों के लिए भी आगामी विधानसभा चुनाव आसान नहीं रहने वाला है। यह संकेत मिला है पिछले छह माह में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा संगठन और सरकार द्वारा कराई गई सर्वे रिपोट्र्स में। सरकार की एक हालिया सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भाजपा की करीब 60 फीसदी सीटों पर हालत खराब है। यही कारण है कि संघ ने प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। साथ ही संगठन व सत्ता की ओर से विधायकों के साथ मंत्रियों को भी समय रहते हालात काबू में करने की हिदायतें दी जा रही हैं। उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा गठबंधन ने भाजपा की हवाई उड़ा दी है। अगर मप्र में भी गठबंधन होता है तो यह भाजपा के लिए भारी पड़ेगा। इतिहास गवाह है कि राजशाही हो या राजनीति चौथी पीढ़ी और चौथी पारी दोनों के पतन का कारण बनती है। कहा जाता है कि विजेता तैमूर लंग ने मशहूर इतिहासकार और समाजशास्त्री इब्न खुल्दुन से अपने वंश की किस्मत पर बात की। खुल्दुन ने कहा कि किसी वंश की ख्याति चार पुश्तों से ज्यादा शायद ही टिकती है। पहली पीढ़ी जीत पर ध्यान केंद्रित करती है। दूसरी पीढ़ी प्रशासन पर। तीसरी पीढ़ी, जो विजय अभियानों या प्रशासनिक जरूरतों से मुक्त होती है, उसके पास अपने पूर्वजों के जमा धन को सांस्कृतिक कार्यों पर खर्च करने के सिवा कोई काम नहीं रह जाता। अंतत: चौथी पीढ़ी तक वह एक ऐसा वंश रह जाता है जिसने अपना सारा पैसा और उसके साथ ही इंसानी ऊर्जा भी खर्च कर दी है। यह प्राकृतिक अवधारणा है और इससे बचा नहीं जा सकता। तो क्या यही प्राकृतिक अवधारणा भाजपा को चौथी पारी में बाधा बनेगी? 40 फीसदी विधायकों पर आंच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा संगठन के बाद अब प्रदेश सरकार की खुफिया रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि शिव 'राजÓ की रिपोर्ट खराब है। इस रिपोर्ट के अनुसार, अगर स्थिति नहीं सुधरी तो 2018 का विधानसभा चुनाव भाजपा को मझधार में डाल सकता है। इसको देखते हुए पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में अपने करीब 40 फीसदी विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा सकती है। ज्ञातव्य है कि पिछले साल संघ ने सरकार को चेताया था कि जनता के बीच सरकार और विधायकों की छवि खराब है। उस समय प्रदेश की राजनीति में कोहराम-सा मच गया था। अब पचमढ़ी में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के दौरान सामने आई ग्राउंड रिपोर्ट ने भाजपा की हवाई उड़ा दी है। सरकार और संगठन द्वारा द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार 165 विधायकों वाली भाजपा की प्रदेश के करीब 24 जिलों में स्थिति चिंता जनक है। जबकि 10 जिलों में विपक्ष से बराबरी का मुकाबला है। वहीं 21 जिलों में पार्टी की स्थिति विपक्ष से अच्छी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 8 मंत्रियों और 58 विधायकों की स्थिति उनके विधानसभा क्षेत्र में खराब है। यानी अभी चुनाव हुए तो यहां भाजपा की हार तय है। इस रिपोर्ट के आने के बाद संगठन और सरकार अचंभित है। वहीं संघ की नजर में भाजपा की तीसरी पारी की सरकार जनता की नजर में पूरी तरह फ्लाप है। संघ ने तो नए चेहरों को मौका देने की सलाह तक दे डाली है। 140 सीटों के लिए नए चेहरों की तलाश उल्लेखनीय है की वर्तमान में भाजपा के पास 165 विधायक हैं। यानी 230 विधानसभा क्षेत्र वाले मप्र में भाजपा पहले से ही 65 सीटों पर कमजोर है। इनमें से वर्तमान समय में कांग्रेस 56, बसपा 4, निर्दलीय तीन सीटों पर काबिज है, जबकि दो खाली हैं। सरकार की वर्तमान रिपोर्ट में 66 सीटों (8 मंत्रियों और 58 विधायकों) पर जनाधार कमजोर हुआ है। अनुमानत: यह आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है। भाजपा के सूत्रों की माने तो यह संख्या 75 तक पहुंच सकती है। इस तरह कम से कम आगामी चुनाव में भाजपा को 140 सीटों (60 फीसदी)पर नए चेहरे उतारने पड़ सकते हैं। इन सीटों पर भाजपा डावांडोल संघ, संगठन, सरकार की रिपोट्र्स और विधानसभा सीट की वर्तमान स्थिति को देखते हुए भाजपा की 140 सीटों पर स्थिति डावांडोल है। 24 जिलों में तो भाजपा की स्थिति पस्त है। दरअसल, इन 140 सीटों में से कुछ वह विधानसभा क्षेत्र हैं जहां पिछले चुनाव में भाजपा कम मार्जिन से जीती थी, वहीं कुछ सीटें वे हैं जहां कांग्रस-सपा गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ेगा, कुछ सीटों पर उम्रदाराज नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा और कुछ सीटें वह हैं जहां मंत्रियों और विधायकों का जनाधार कम हो रहा है। श्योपुर: विजयपुर। मुरैना : जौरा, मुरैना, दिमनी और अम्बाह। भिंड: अटेर, भिंड, लहार और मेहगांव। ग्वालियर: ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर ईस्ट, भितरवार और डबरा। दतिया: सेवढ़ा और भांडेर। शिवपुरी: करेरा, पोहरी, पिछोर और कोलारस। गुना: बमोरी और राघौगढ़। अशोक नगर: अशोक नगर, चंदेरी और मुंगावली। सागर: खुरई, सुरखी, सागर, देवरी और बंडा। टीकमगढ़: टीकमगढ़, जतारा, पृथ्वीपुर और खरगापुर। छतरपुर : चांदला, राजनगर, छतरपुर और मलहेरा। दमोह: दमोह, जबेरा और हटा। पन्ना : पवई, गुन्नौर और पन्ना। सतना: चित्रकूट, रैगांव, अमरपाटन और रामपुर बघेलान। रीवा : सिरमौर, सेमरिया, मउगंज, देवतालाब, मनगवां और गुढ़। सीधी: चुरहट, सीधी और सिंहावल। सिंगरौली: चितरंगी। शहडोल: ब्यौहारी। अनूपपुर: कौतमा और अनूपपुर। उमरिया: बांधवगढ़। कटनी: बड़वारा और विजयराघवगढ़। जबलपुर: पाटन, बरगी, जबलपुर ईस्ट, जबलपुर वेस्ट और सिहोरा। डिण्डोरी: डिण्डोरी। मण्डला : मण्डला। बालाघाट: बैहर, लांजी, परसवाड़ा और बालाघाट। सिवनी : बरघाट, सिवनी, केवलारी और लखनादौन। छिन्दवाड़ा: अमरवाड़ा, सौंसर, परासिया और पाण्डुर्ना। बैतूल: घोड़ाडोंगरी। हरदा: टिमरनी और हरदा। होशंगाबाद: सिवनी मालवा। रायसेन: सांची (अजा)। विदिशा: बासौदा, कुरवाई (अजा), सिरोंज और शमशाबाद। भोपाल: गोविंदपुरा, भोपाल उत्तर और भोपाल मध्य। सिहोर : आष्टा, इछावर और सीहोर। राजगढ़ : नरसिंहगढ़, व्यावरा और खिलचीपुर। आगर: सुसनेर। शाजापुर: शाजापुर और शुजालपुर। देवास: सोनकच्छ और मंधाता। खंडवा: मंधाता। खरगोन: भीकनगांव, बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन और भगवानपुरा। बड़वानी: राजपुर, पानसेमल और बड़वानी। अलीराजपुर: अलीराजपुर और जोबट। झाबुआ: थांदला और पेटलावाद। धार: सरदारपुर, धार, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी और बदनावर। इंदौर: राउ। उज्जैन: उज्जैन नार्थ और उज्जैन साउथ। रतलाम: सैलाना और आलोट। मंदसौर: मल्हारगढ़ और सुवासरा। नीमच: मनासा, नीमच और जावद। नरसिंहपुर: गोटेगांव और नरसिंहपुर। इन मंत्रियों के क्षेत्र में साख दांव पर प्रदेश में भाजपा विधायकों के साथ ही करीब पंद्रह मंत्रियों के क्षेत्र में पार्टी की साख दांव पर है। जहां कुछ मंत्रियों की साख गिरी है, वहीं कुछ विवादों में घिरे हैं। जबकि कई मंत्रियों के उम्रदराज होने के कारण संगठन उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है। ऐसे में इन मंत्रियों के क्षेत्र में भाजपा को मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है। पार्टी को कांग्रेस के साथ ही अपनों से भी जुझना पड़ेगा। जयंत मलैया: प्रदेश के वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत मलैया सरकार के सबसे सुलझे हुए मंत्री है। इनके कामकाज से सरकार और संगठन दोनों संतुष्ट हैं। लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र दमोह में उनका जनाधार निरंतर कम हो रहा है। पिछले दो चुनावों में उनकी जीत का अंतर बेहद कम रहा। पिछले चुनाव में कांग्रेस के चंद्रभान सिंह को उन्होंने मात्र 4953 मतों से परास्त किया था। इसलिए दमोह सीट इस बार भी भाजपा के लिए रेड जोन में है। वैसे मलैया के प्रभार वाले जिला इंदौर की जनता भी उनसे खुश नहीं है। खासकर व्यापारी और उद्योग वर्ग। उधर, मलैया के पुत्र अपने पिता की विरासत संभालने के लिए तैयार हैं। डॉ. गौरीशंकर शेजवार: वन, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी मंत्री शेजवार ने अगला चुनाव न लडऩे की घोषणा की है। इस कारण भाजपा को सांची (अजा)के लिए एक जीताऊ नेता की दरकार है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी को 20936 मतों से हरा कर शेजवार विधायक बने। वैसे वन मंत्री के रूप में उनकी परफार्मेंस संतोषप्रद नहीं है। वे अपने प्रभार वाले जिला जबलपुर में भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। हालांकि शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। कुसुम मेहदेल: प्रदेश की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं जेल मंत्री कुसुम मेहदेल एक मंत्री के रूप में सफल नहीं हो पाई हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र पन्ना में उनकी स्थिति संतोषजनक है। पिछले चुनाव में उन्होंने बसपा के लोधी महेन्द्र पाल वर्मा को 29036 वोट से हराया था। लेकिन भाजपा संगठन द्वारा तय उम्र की सीमा के कारण आगामी चुनाव में उनका टिकट कटना तय है। ऐसे में भाजपा के लिए पन्ना सीट चिंता का कारण बनी हुई है। जहां तक मेहदेले का सवाल है तो वे अपने प्रभार वाले जिलों दमोह और छतरपुर में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई हैं। हालांकि कुसुम मेहदेले के भतीजे पार्थ बुआ की विरासत संभालने के लिए पहले से ही सक्रिय हैं। गौरीशंकर बिसेन: अपने बड़बोलेपन के कारण हमेशा चर्चा में रहने वाल किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री बिसेन पिछला चुनाव मात्र 2500 वोट से जीत पाए। बालाघाट सीट पर सपा की अनुभा मुंजार ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। इस बार बिसेन का जनाधार और कम हुआ है। संघ के बात संगठन ने भी बिसेन को लेकर चिंता जाहिर की है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा गठबंधन बिसेन ही नहीं भाजपा के लिए भी खतरे की घंटी है। बिसेन की परफार्मेंस उनके प्रभार वाले जिलों ग्वालियर और छिन्दवाड़ा में भी ठीक नहीं है। वैसे बिसेन की बेटी मौसम बिसेन पिता की विरासत संभालने की तैयारी कर रही हैं। रुस्तम सिंह: प्रदेश के लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री रूस्तम सिंह भाजपा के सबसे कमजोर मंत्री के तौर पर सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, न अपने विधानसभा क्षेत्र मुरैना और न ही सरकार में वे अच्छा परफार्मेंस कर पाए हैं। वैसे भी पिछले चुनाव में वे बसपा के रामप्रकाश से मात्र 1704 वाट से ही जीत पाए थे। ऐसे में मुरैना में हार से बचने के लिए भाजपा कोई नया दांव खेल सकती है। यशोधरा राजे सिंधिया: खेल और युवा कल्याण, धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री यशोधरा के खिलाफ भाजपा में ही माहौल बनाया जा रहा है। संघ की रिपोर्ट में बताया गया है कि उनके राजसी व्यवहार के कारण शिवपुरी की जनता का अब उनसे मोहभंग होने लगा है। ज्ञातव्य है कि पिछले चुनाव में वे कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र रघुवंशी से 11145 मतों से जीती थीं। लेकिन इस बार सरकार ने उनसे उद्योग विभाग लेकर यह जता दिया है कि उनसे सरकार भी खुश नहीं है। वर्तमान में यशोधरा के पास जो विभाग हैं वे केवल शोभा के लिए हैं। पारसचंद्र जैन: विवादों में रहने वाले पारस जैन के पास ऊर्जा विभाग है, लेकिन वे अभी तक इस विभाग को समझ नहीं पाए हैं। वैसे भी यह विभाग अफसर चला रहे हैं। पारस जैने ने पिछले चुनाव में भले ही उज्जैन नार्थ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के विवेक जगदीश यादव को 24849 वोटों से हराया है, लेकिन विवादों के कारण उनके क्षेत्र की जनता खफा है। हालांकि कहा जाता है कि यहां पारस जैन नहीं बल्कि संघ चुनाव लड़ता है। सो पारस जैन का भाग्य संघ के हाथ में है। वैसे वे अपने प्रभार के जिलों खण्डवा और बुरहानपुर में भी उपेक्षित हैं। ज्ञान सिंह: यह विडम्बना है की सांसद बनने के बाद भी ज्ञान सिंह मंत्री के पद पर आसिन हैं। वैसे आदिम जाति कल्याण, अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री वे केवल नाम के लिए ही हैं। एक मंत्री के तौर पर उनकी उपलब्धि नगण्य है। वर्तमान में बांधवगढ़ भाजपा के लिए रेड जोन में है। आलम यह है कि इस सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए पार्टी के पास जीताऊ उम्मीदवार तक नहीं है। 2018 तक तो स्थिति और खराब हो सकती है। माया सिंह: ग्वालियर ईस्ट विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी मुन्नालाल गोयल से 1147 वोटों से जीती माया सिंह नगरीय विकास एवं आवास मंत्री के तौर पर खुब सक्रिय हैं। वे अपने प्रभार वाले जिलों दतिया और मुरैना में काफी चर्चित हैं। लेकिन खुद के विधानसभा क्षेत्र में उनकी स्थिति चिंताजनक है। इसको लेकर संघ, संगठन और सरकार भी चिंतित है। उधर क्षेत्र में महल विरोधी लोग भी इनके खिलाफ लगातार मुहिम चला रहे हैं। भूपेन्द्र सिंह: मंत्री के तौर पर भूपेंद्र सिंह काफी सक्रिय हैं। वे शिव 'राजÓ के नौ रत्नों में से एक हैं। इसलिए मुख्यमंत्री ने उन्हें गृह और परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपे हैं। लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र खुरई में वे लगातार जनाधार खो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार जनता के बीच उनकी छवि ठीक नहीं है। यही नहीं पिछले चुनाव में जिस तरह कांग्रेस के अरूणोदय चौबे से उनको कड़ी टक्कर मिली थी और वे 6084 वोट से जीते थे वह भी चिंता का विषय है। खबर है कि आगामी चुनाव आते-आते उन्हें संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर खुरई से मुक्त किया जा सकता है। वैसे अपने प्रभार वाले जिले उज्जैन में सिंहस्थ के सफल समापन ने इनकी हैसियत बढ़ा दी है। दीपक जोशी: राज्य मंत्री रहते हुए प्रदेश के सबसे सक्रिय मंत्रियों में दीपक जोशी का नाम आता है। जोशी के पास तकनीकी शिक्षा, श्रम, स्कूल शिक्षा आदि विभाग हैं। लेकिन संघ और संगठन की नजर में पिछले चुनाव में उनकी जीत संतोषप्रद नहीं थी। हाटपिपल्या विधानसभा सीट पर वे कांग्रेस के ठा. राजेन्द्र सिंह बघेल 6175 वोट से जीते थे। यही नहीं पिछले तीन साल में कांग्रेस ने अपनी स्थिति और मजबूत की है। इसलिए भाजपा ने इस सीट को रेड जोन में रखा है। हर्ष सिंह: आयुष, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, जल संसाधन राज्य मंत्री हर्ष सिंह ने रामपुर बघेलान सीट पर बसपा के रामलखन सिंह 24255 मतों से मात दी थी। लेकिन वे मंत्री के तौर पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। संघ, सरकार और संगठन उनके परफार्मेंस से खुश नहीं है। वहीं उनके खराब स्वास्थ्य के कारण भी पार्टी रामपुर बघेलान को लेकर सतर्क है। ललिता यादव: पिछले चुनाव में छतरपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी को 2217 मतों से हराकर विधायक बनी ललिता यादव को लेकर भी पार्टी असमंजस में है। वे पिछड़ा वर्ग तथा महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री हैं, लेकिन उनकी साख नहीं जम पाई है। पार्टी को इस सीट को लेकर चिंता है, क्योंकि ललिता यादव अपने विधानसभा क्षेत्र भाजपा का किला मजबूत नहीं कर पाई हैं। संजय पाठक: विजयराघवगढ़ सीट पहले कांग्रेस फिर भाजपा और आगे भी भाजपा के कब्जे में रहेगी इसको लेकर न तो संघ और न ही पार्टी आश्वस्त है। जिस तरह कटनी हवाला कांड में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री पाठक का नाम उछला और उनके खिलाफ माहौल बना है उससे कम ही उम्मीद है की यहां पाठक की साख बरकरार रह पाएगी। इसकी वजह यह भी है कि संघ भी पाठक के विरोध में है। सूर्यप्रकाश मीना: कहा जाता है कि विदिशा जिले में भाई राघव जी की क्षतिपूर्ति के लिए भाजपा सूर्यप्रकाश मीना को आगे बढ़ा रही है। इसी के लिए उन्हें उद्यानिकी तथा खाद्य प्रसंस्करण, वन राज्य मंत्री बनाया गया है। लेकिन शमशाबाद विधानसभा सीट पर उनकी 3158 वोटों की जीत राह में रोड़ा बनकर खड़ी है। दरअसल, वे अभी तक सफल मंत्री के तौर पर अपने को सिद्ध नहीं कर पाए हैं। उधर संघ और भाजपा उनको लेकर आश्वस्त नहीं है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनकी नैया को पार लगा सकते हैं। ऐसी स्थिति क्यों बनी सत्ता अच्छे से अच्छे सतपुरूष को पथभ्रष्ट कर देती है। कुछ ऐसा ही रोग भाजपाईयों को लग गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार, अहंकार, जनता के कटाव, मंत्रियों-विधायकों और अफसरों में टकराव, कार्यकर्ताओं से दुव्र्यवहार और सरकार की योजनाओं का बंटाढार होने के कारण यह स्थिति बनी है। निष्क्रिय विधायकों को लेकर आलाकमान लगातार टिप्पणी करता रहा है। ठेकदारी और व्यापार में दिलचस्पी लेने वाले इन विधायकों पर जनता के बीच सक्रिय न रहने का आरोप लगता रहा है। इनके खिलाफ पार्टी नेताओं खास कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को शिकायतें मिलती रहती हैं। ऐसे में इन विधायकों का टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि 2003 में जो रोग दिग्विजय सिंह की सरकार को लगा था वही रोग वर्तमान सरकार को लग गया है। यानी भाजपा में परिवारवाद से ले कर दलबदल की नीतियों तक को अपना लिया है। इस से भाजपा को अपने अंदर से ही चुनौती मिलने लगी। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश में 2003 में दिग्विजय सिंह की सरकार सत्ता से बेदखल हुई थी। तब उसके खिलाफ हवा बनाने में चार-पांच मुद्दों ने अहम भूमिका निभाई थी। इनमें सबसे बुनियादी मुद्दा राज्य की आर्थिक स्थिति थी। तब राज्य का अर्थतंत्र इस कदर गड़बड़ाया कि वह बीमारू की श्रेणी में शुमार होने लगा। निवेश आना रुक गया और बेरोजगारी तेजी से बढ़ती जा रही थी। फिर सड़कों की दुर्दशा और बिजली की किल्लत कोढ़ में खाज बन गई। इससे तंगहाल प्रदेश की जनता ने दिग्विजय सिंह के तमाम 'चुनावी प्रबंधनÓ (जिसका वे दावा किया करते थे) को धता बताते हुए भाजपा को तीन-चौथाई बहुमत के साथ सत्ता सौंप दी। ऐसी ही स्थिति प्रदेश में वर्तमान समय में दिख रही है। सरकार केवल दावे और आंकड़े बाजी करके विकास की तस्वीर परोस रही है। जबकि हकीकत में सड़क, पानी, बेरोजगारी, महंगाई ने जनता को बेहाल कर दिया है। रोजगार के संबंध में 2014-15 का मध्य प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण ही सरकार की चुगली करता है। यह बताता है कि प्रदेश में नवंबर, 2014 तक शिक्षित बेरोजगारों की संख्या करीब 16.5 लाख थी। यह आंकड़ा वह है जो रोजगार कार्यालयों में दर्ज है। इसमें अशिक्षित बेरोजगार जुड़े ही नहीं हैं। निवेश, कारोबार, रोजगार के बाद बात करें राज्य की आर्थिक स्थिति की तो राज्य पर कर्ज का बोझ इस वक्त करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। इस पर 6,000 करोड़ रुपए का सालाना ब्याज लग रहा है। लगातार तीन बार से सत्ता सुख भोग रही भाजपा को मालुम है कि आगामी चुनाव में उसके सामने चुनौतियां अपार है। इसलिए अब वह अपने सारे सिद्धांतों से समझौता करने के मूड में भी नजर आ रही है। हालांकि पार्टी अभी से 2018 के लिए पार्टी अब फंूक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाएगी। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण संघ, संगठन, सरकार और कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट के आधार पर होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने केवल कांग्रेस पार्टी ही थी। लेकिन इस बार कांग्रेस, सपा बसपा के साथ ही एंटीइंकंवेसी भी रहेगी। तैयार होगा विधायकों का रिपोर्ट कार्ड जपा मध्यप्रदेश में अपनी चौथी पारी को सुनिश्चित करने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती है। इसलिए मैदानी जमावट के साथ ही पार्टी अब अपनों की हैसियत का भी आंकलन कर रही है। इसी कड़ी में पार्टी अब अपने विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करेगी। इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा कार्यकर्ता, और स्थानीय लोगों का मंतव्य लिया जाएगा। उधर, शिवराज सरकार भी अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई है। चुनाव कैसे जीतना है? अभी जनता के बीच विधायकों की क्या स्थिति है? इस स्थिति को कैसे सुधारा जाए? वोट की राजनीति क्या हो? ये सब आकलन पचमढ़ी प्रशिक्षण वर्ग में खुलकर हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधायकों को जीत के लिए मंत्र देने के साथ ही नसीहत भी दी। उन्होंने विधायकों से कह दिया है कि मई तक विधायकों के कामकाज का सर्वे हो जाएगा। विधायकों की उनके विधानसभा क्षेत्र में स्थिति क्या है, इसे लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मार्च से सर्वे प्रारंभ करने जा रहे हैं। निजी संस्था के साथ इस बार इंटेलीजेंस की रिपोर्ट को भी जोड़ा जाएगा, ताकि वास्तविक स्थिति का पता चल सके। मई के दूसरे पखवाड़े में मुख्यमंत्री विधायकों से वन-टू-वन चर्चा के दौरान यह रिपोर्ट बताएंगे। इसे चुनाव से पहले की रिपोर्ट माना जाएगा, जिसमें वो कमियां बताई जाएंगी, जिसे विधायक को अगले डेढ़ साल में सुधारना होगा। इस बार के सर्वे में खास तौर पर यह भी पूछा जाएगा कि एक या दो बार के विधायकों की संपत्ति सामान्य रही है या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। यह सवाल केंद्रीय स्तर से आया है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए वित्तीय वर्ष में ऐसे लोगों के खिलाफ मुहिम शुरू करेंगे, जिनकी अचल संपत्तियां कई गुना है। विधायकों के साथ इस बार मंत्रियों की परफॉर्मेंस का आंकलन किए जाने की तैयारी है। दूसरी तरफ भाजपा ने विधायकों व मंत्रियों का संगठन स्तर से फीडबैक लेना प्रारंभ कर दिया है। तीन तरह से बनेगा रिपोर्ट कार्ड भाजपा ने सर्वे का आधार तय कर लिया है। इसका तीन तरह का पैमाना होगा। विधानसभा में इंटेलीजेंस के आधार पर रिपोर्ट बन रही है। एक सर्वे निजी एजेंसी से कराया जाएगा, जिसमें 30 से 40 सवाल होंगे। इसके अलावा संभागीय संगठन मंत्री अपनी संघ और अनुषांगिक टीम के कार्यकर्ताओं की बदौलत मैदानी आकलन करेंगे। ये सब कवायद अभी से इसलिए की जा रही है, ताकि विधायकों को सुधरने का मौका दिया जा सके। इसलिए अभी तीन महीने दिए गए हैं। भाजपा मौजूदा सीटों पर उम्मीदवारों का चयन करते समय सीटिंग विधायकों की जनता के बीच छवि, विधायक के रूप में उनके कामकाज के साथ ही चुनाव जीतने की संभावना को भी जांच-परख करेगी। जो विधायक इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरेंगे, उनके टिकट काट दिए जाएंगे। शिवराज की छवि नहीं लगेगी दांव पर भाजपा में मप्र के मुख्यमंत्री की छवि विजेता की है। लेकिन सरकार की ही रिपोर्ट ने अब उनकी छवि दांव पर लग गई है। दरअसल, संघ और संगठन नहीं चाहता है की शिवराज पर इतना भार डाला जाए की वे हर बार की तरह इस बार भी खराब रिपोर्ट वालों की नैय्या को पार लगा दें। इसलिए पार्टी इस बार खराब रिपोर्ट वालों को बर्दास्त करने के मूड में नहीं है। पचमढ़ी बैठक में मुख्यमंत्री ने भले ही कह दिया है की मई में एक बार फिर से मंत्रियों-विधायकों की रिपोर्ट का आंकलन किया जाएगा, लेकिन इस बार किसी के साथ सहानुभूति नहीं दिखाई जाएगी। यानी जिसकी परफार्मेंस खराब होगी उसे घर बैठना ही पड़ेगा। संघ और संगठन भी जता चुके हैं चिंता प्रदेश सरकार के मंत्रियों और विधायकों की परफार्मेंस को लेकर संघ और भाजपा भी चिंता जता चुके हैं। दिसंबर में इंदौर में हुए चार दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में भी विधायकों को ये बता दिया गया था कि 2018 में आधे से ज्यादा विधायकों को टिकट नहीं मिलेगा। संगठन ने साफ कर दिया है कि उन विधायकों को ही दोबारा चुनाव लड़वाया जाएगा जिनके नाम उनके सर्वे में आएंगे। अगले चुनाव में भाजपा के लिए कांग्रेस से ज्यादा मुश्किलें पार्टी के अंदर से आने वाली हैं, उम्मीदवारों की संख्या बहुत ज्यादा है और कई सिटिंग विधायकों के परफार्मेंस से पार्टी खुश नहीं है। सिटिंग विधायकों में मंत्रियों को भी गिना जा रहा है। 2013 में एक दर्जन मंत्रियों की चुनाव में हार हुई थी। इसलिए इस बार पार्टी कोई चुक नहीं करने वाली है। चुनावी बिसात पर मोहरें तैयार विधानसभा चुनाव को अभी लंबा वक्त है, लेकिन भाजपा चुनावी बिसात पर मोहरें तैयार कर रही है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा प्रत्येक विधानसभाओं में सीटिंग विधायक के अलावा 3-3 दावेदार तय कर रही है। यह बात अलग है कि किसके हाथ टिकट लगता है पर इस बार पार्टी उम्र सीमा के आधार पर भी लोगों को अलग कर सकती है साथ ही साथ उन दावेदारों जिनका ग्राफ नीचे गया है को नकार भी सकती है। हालांकि कोई भी अपने को विजयी उम्मीदवार से कम नहीं मानता, लेकिन भाजपा द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से इन प्रत्याशियों का भाग्य तय होगा। भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में विधायकों, नए चेहरों और कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व विधायकों के लिए कुछ मानक तय किए गए हैं। इन मानकों के अनुसार भी कुछ को टिकट मिलेंगे कुछ के कटेंगे। भाजपा सूत्रों की माने तो भाजपा केवल जिताऊ उम्मीदवारों पर दांव लगाएगी जो बिकाऊ न हों, इसके लिए भाजपा ने कुछ मानक तय किए हैं। इन मानकों में विधानसभा के कार्यकाल के साथ-साथ लोकसभा चुनाव और उपचुनाव की भूमिका भी देखी जाएगी। जिसके आधार पर उन्हें टिकट दिया या छिना जाएगा। इसी प्रकार पुराने जीत या हार के मानक भी आंकड़े के रूप में प्रत्याशियों की छवि को प्रभावित करेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है। संघ के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष की रिपोर्टों पर भी आलाकमान निर्णय करेगा। कटेंगे बहुतों के टिकट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में चौथी बार सत्ता में काबिज होने जनता का जहां मन मोहने में लगे हुए हैं। वहीं भाजपा के विधायकों की कराई गई मैदानी सर्वे रिपोर्ट तथा रायशुमारी में आए प्रतिकूल परिणामों को लेकर भाजपा के सत्ता और संगठन में हड़कंप मच गया है। ग्वालियर चंबल संभाग, विंध्य क्षेत्र तथा बुंदेलखंड अंचल के भाजपा विधायकों की रिपोर्ट बहुत कमजोर उजागर हुई है। जिस कारण भाजपा हाईकमान ने यह दृढ़ निश्चय कर लिया है कि बहुत से वर्तमान विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे जायेंगे। जीतने की संभावना और परफारमेंस के आधार पर विधायकों को टिकट देने का भाजपा का यह फैसला कहीं पार्टी का खेल ही न बिगाड़ दे, इन विधायकों की परफारमेंस भले न अच्छी रही हो, लेकिन ये विधायक बागी बन कर या किसी अन्य दल से टिकट लेकर भाजपा के खेल को बिगाड़ सकते हैं।

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