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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

स्वच्छ भारत के सपने का मलिन सच

1260 करोड़ रुपए स्वाहा, फिर भी 50 फीसदी घरों में शौचालय नहीं
2019 तक प्रदेश में बनाने हैं 90,03,900 शौचालय
18 वर्षों से 5 राज्यों में अटका हुआ है स्वच्छ भारत का सपना
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को हाथों-हाथ लेने वाले मप्र में उनकी स्वच्छ भारत योजना दम तोड़ रही है। आलम यह है कि 1260 करोड़ रूपए फूंकने के बाद भी मप्र की आधी से अधिक आबादी खुले में शौच कर रही है। यानी प्रदेश के आधे घरों में शौचालय नहीं है। इसके बावजुद आंकड़ों का खेल ऐसा चल रहा है कि अधिकारी कागजी घोड़े दौड़ाकर खुले में शौचमुक्त जिला घोषित कराने में जुटे हुए हैं। जबकि स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिन राज्यों ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है, मप्र नीचे से तीसरे स्थान पर है। मप्र से खराब प्रदर्शन बिहार और झारखंड का है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने पहले भाषण में स्वच्छता को एक व्यापक एजेंडे के रूप में देश के सामने रखा। उन्होंने स्वच्छता के महत्व को कुछ इस तरह बयां किया था- पहले शौचालय, फिर देवालय। इस भावना को अमली जामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई। केंद्र सरकार ने 2019 तक भारत को खुले में शौचमुक्त बनाने के लिए योजना भी बना ली। मप्र सरकार ने भी 2019 तक प्रदेश में लक्षित 90,03,900 शौचालय बनाने की कार्ययोजना बना ली है। लेकिन दो सालों में करीब 11.25 लाख ही शौचालय बन पाए। इनमें से भी अधिकांश शौचालय कागजों पर ही बने हैं। 58 फीसदी घरों में शौचालय नहीं 18 वर्ष पहले जब पहली बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए-1) सत्ता में आया था तो 'संपूर्ण स्वच्छता अभियानÓ शुरू हुआ था। इस अभियान के दौरान मप्र के 86 प्रतिशत परिवार खुले में शौच करते थे। बाद में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इसका नाम बदल कर निर्मल भारत अभियान रखा। अब वर्तमान मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान नाम दिया है, लेकिन इन 18 साल में मप्र के गांवों में मात्र 42 फीसदी घरों में ही शौचालय बन सके हैं। यानी प्रदेश में आज भी 58 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच कर रही है। दरअसल, केंद्र और राज्य सरकार ने इन अभियानों के लिए जो फंड दिया वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता गया। देश में सबसे पहले पंचायती राज व्यवस्था लागू करने वाले मप्र की पंचायतों में जितना भ्रष्टाचार हुआ है, शायद ही किसी अन्य प्रदेश में हुआ हो। यहां आलम यह है कि निर्माण बड़ा हो या छोटा हर जगह भ्रष्टाचार हो रहा है। इसका खलासा समेकित ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार मप्र में आंगनबाड़ी केंद्र व शौचालय निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। सरकार ने घर-घर शौचालय बनाने के लिए प्रदेश की 23 हजार पंचायतों को करीब 1260 करोड़ रुपए दिया था। लेकिन सात साल बाद भी 50 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र में शौचालय नहीं हैं। जबकि पंचायतों ने कागजों पर रकम खर्च कर दी है। स्वच्छता की कागजी हकीकत 2 अक्टूबर 2014 से प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए प्रदेश में शौचालय निर्माण का अभियान सरकारी आंकड़ों में तो सरपट दौड़ रहा है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश में अभियान कहीं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है, तो कहीं इच्छाशक्ति और जागरुकता के अभाव में दम तोड़ रहा है। शौचालय में कंडे-लकड़ी भरे हैं। न सीट है न छत। रतलाम में 2015-16 में 33,010 शौचालय निर्माण का लक्ष्य था, जबकि सिर्फ 6,452 ही बन सके है। नीमच में लक्ष्य की तुलना में 40 फीसदी शौचालय अधूरे हैं। 18 हजार शौचालय के स्थान पर केवल 5400 ही बन पाए हैं। मंदसौर में सवा लाख से ज्यादा लोगों के घरों में अब भी शौचालय नहीं हैं। करीब एक लाख 13 हजार शौचालय नहीं बने। लक्ष्य की तुलना में 30 फीसदी ही बन पाए। खंडवा में पिछले वर्ष 36 हजार शौचालय का लक्ष्य था, लेकिन 10 हजार भी नहीं बन पाए। इस साल 1.18 लाख शौचालयों का लक्ष्य है। बड़वानी में खुले में शौच से मुक्त करने का सपना कोसों दूर है। डेढ़ लाख से ज्यादा घर ऐसे हैं, जिनमें शौचालय नहीं हैं। बुरहानपुर में 28,134 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, लेकिन केवल 7 हजार ही बनाए जा सके हैं। खरगोन में स्थिति गंभीर है। शौचालय की आड़ में 1300 रुपए की वसूली हो रही है। शहर के 17 सौ घरों में शौचालय नहीं हैं। झाबुआ में शौचमुक्त गांवों को कागजों में समेट दिया है। 34 हजार 52 शौचालय बनाने का लक्ष्य था जिसमें से 20342 ही बन पाए हैं। धार जिले के पौने दो लाख परिवार खुले में शौच को मजबूर हैं। इस वर्ष 78 हजार शौचालय का लक्ष्य है जबकि 6376 बन पाए हैं। देवास में वर्ष 2015-16 में 30,358 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, जिसमें से 17001 बन सके। 2016-17 में 36 हजार के लक्ष्य में से 6755 शौचालय बने हैं। राजगढ़ जिले में 1.40 लाख के लक्ष्य के मुकाबले 22,716 शौचालय बन सके हैं। आधे से अधिक शौचालयों की राशि नहीं मिल पाई। सीहोर में एक लाख 17 हजार 884 शौचालय बनाने के लक्ष्य में से 81 हजार 431 बन पाए। 155 पंचायत ओडीएफ हो चुकी है। सीहोर जिले का बुधनी मुख्यमंत्री का गृह विकासखंड है। वर्ष 2013-14 से यहां गांव को खुले में शौचमुक्त करने के प्रयास चल रहे हैं। 2 साल में यहां बहुत धनराशि खर्च की गई है। कुछ काम भी हुए हैं, पर कामयाबी कोसों दूर है। 2015 तक बुधनी विकासखंड में लगभग 16,000 शौचालय बनाए गए थे। इनमें से अनेक तो फर्जी या लापता हैं। लगभग 1965 शौचालय जर्जर और अनुपयोगी पाए गए हैं। इसी तरह राज्य के प्राय: सभी जिलों में 2012 के पहले रिपोर्ट किए गए 15 लाख में से अधिकतर शौचालय फर्जी और जर्जर पाए गए हैं। इस तरह के जर्जर शौचालयों को सुधारने के लिए सरकार के पास न तो धनराशि की व्यवस्था है और न ही मरम्मत की अलग से कोई रणनीति। गुना में 30 हजार शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले 2120 का निर्माण हो चुका है। पानी नहीं होने से उपयोग नहीं हो रहा है। अशोकनगर में 19742 शौचालय बनाने का लक्ष्य था, जिसमें से 2300 बन सके हंै। खुले में शौच मुक्त ग्राम पंचायतों का लक्ष्य 47 है। कटनी में दो वर्ष के दौरान 36 हजार शौचालय बनाने के लक्ष्य का 35 प्रतिशत कार्य यानी 12448 शौचालय बन पाए हैं। शहडोल में 30 हजार शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले केवल 3082 ही बन सके। 2015-16 में भी 30 हजार में से 17325 शौचालय बने थे। अनूपपुर में 2015-16 में 25,290 के लक्ष्य में से 15715 शौचालय बन पाए। इस वर्ष 24000 में से अब तक 4984 ही बने हैं। मंडला में 2016-17 में 54000 शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया। अब तक 15,600 का निर्माण हो चुका है। छिंदवाड़़ा में दो साल में 72 हजार शौचालय बने, 170 पंचायतों को ओडीएफ घोषित किया, लेकिन गुणवत्ता के अभाव में टूट-फूट गईं। बालाघाट की 690 पंचायतों में से 76 खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुकी हैं। दतिया में 4820 शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया, जिसमें से 495 का ही निर्माण हुआ। शिवपुरी में 25 हजार टॉयलेट बनाने का लक्ष्य था, जिसमें 50 फीसदी भी नहीं बन पाया है। इनमें से 80 फीसदी उपयोगविहीन हैं। भिण्ड में 1.76 हजार शौचालय का निर्माण होना था लेकिन 61 हजार ही बन पाए हैं। आदत न होने से 80 फीसदी उपयोग नहीं कर रहे। श्योपुर में पानी की कमी के चलते 1.12 लाख शौचालय बनाने के लक्ष्य के मुकाबले 20 हजार बन पाए हैं। इस वर्ष 42000 के लक्ष्य में से 2600 शौचालय ही बने हैं। मुरैना में इस वर्ष 42000 शौचालय निर्माण का लक्ष्य है, जिसमें से सिर्फ 2600 बने हैं। यहां 10500 शौचालय बन जाना था। डबरा में 6000 शौचालय बनाने का लक्ष्य है, जिसमें से अब तक 815 बने हैं, जबकि 2015-15 में 6000 का लक्ष्य था, जिसमें से सिर्फ 3800 बन सके। सागर में 2,34,931 शौचालय का लक्ष्य है, जिसमें से दो साल में मात्र 48 हजार बन सके हैं। 17 पंचायतें ओएफडी हो सकी हैं। छतरपुर में 2016-17 में मात्र 2426 शौचालयों का निर्माण हुआ, जबकि तीन वर्ष में 25213 बन पाए हैं, जबकि लक्ष्य 2. 50 लाख शौचालय बनाने का है। टीकमगढ़ में 36 हजार शौचालय के लक्ष्य में से केवल 3800 ही बने हैं। जिले में सबसे बड़ी समस्या निर्माण के बाद भुगतान की है। सिवनी की 645 पंचायतों में शौचालय निर्माण पूर्ण हो चुका है। अब तक 75 हजार से ज्यादा शौचालय के निर्माण किए गए हैं। 31 मार्च 2017 तक सिवनी जिले को पूर्णत: खुले में शौच से मुक्त बनाने का लक्ष्य है। विदिशा में इस वर्ष 4200 शौचालय के लक्ष्य के मुकाबले तीन माह में ही 3954 बन चुके हैं। हालांकि 2015-16 में 38,884 के लक्ष्य के मुकाबले 13,900 ही बन पाए थे। ऐसे में स्वच्छ मप्र का सपना कैसे पूरा होगा। फिर भी नहीं छूटा लोटा भारत सरकार के स्वच्छता मिशन की सफलता में अहम कड़ी है हर घर में शौचालय निर्माण ताकि गांव से लेकर महानगर तक को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा सके। इसके लिए देशभर के निकायों को अंतिम तिथि 30 दिसम्बर 2016 दी गई थी। इस अवधि में प्रदेश की कई नगर निगमों ने करीब तीन माह तक चले घालमेल और घटिया शौचालय निर्माण के बाद निर्धारित तिथि पर अपने क्षेत्र के सभी वार्डों को ओडीएफ यानि खुले में शौच से मुक्त करा दिया है, लेकिन आज भी वहां की आबादी खुले में शौच के लिए जा रही है। चाहे प्रदेश की राजधानी भोपाल हो, या व्यावसायिक राजधानी इंदौर या फिर छिंदवाड़ा नगर निगम ही क्यों न हो। दरअसल अफसरों और निगमों के पदाधिकारियों ने कागजों पर हर घर में शौचालय दिखाकर ओडीएफ का तमगा तो ले लिया है। इस हायतौबा में बने शौचालय घटिया किस्म के हैं। इस कारण शौचालयों का शतप्रतिशत उपयोग नहीं हो रहा है। शहडोल में ही 60 फीसदी शौचालयों का ताला नहीं खुल सका है। जागरूकता के अभाव में यही स्थिति प्रदेश के लगभग सभी जिलों की है। मंडला में 35 प्रतिशत लोग ही शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं। राजगढ़ में 50 प्रतिशत लोग ही उपयोग कर रहे हैं। विदिशा जिपं सदस्य सुभाषिनी बोहत के मुताबिक क्षेत्र में कई घरों में शौचालय नहीं होने से महिलाएं खेतों, मेड़ों पर शौच के लिए जाती हैं तो लोग पत्थर मारते हैं। करीब 80 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों के घरों में शौचालय नहीं। आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। दतिया के एक गांव में 84 शौचालय बनाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन 24 शौचालय भी नहीं बन पाए हैं। इसके साथ प्रदेश के कई हिस्सों में शौचालय आर्थिक अनियमितता की भेंट चढ़ चुका है। बालाघाट जिले में 57 हजार शौचालय बनाने के दावे की जांच में 6805 शौचालय ही मिले। शिवपुरी के दिनारा में तो टॉयलेट घोटाला के चलते प्रभारी सीईओ एके श्रीवास्तव को जेल जाना पड़ा और सरपंच-सचिव ने फरारी काटकर अग्रिम जमानत करानी पड़ी। 15 दिन में 50 करोड़ खर्च डाले मप्र की राजधानी भोपाल को करीब 12 साल तक पेरिस बनाने का ख्वाब दिखाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर शहर को बुचडख़ाने के तमगे से निजात तो नहीं दिला सके, लेकिन वर्तमान नगर निगम प्रशासन ने शहर को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) शहरों की रैकिंग दिलाने में कामयाबी जरूर पा ली है। भले ही इसके लिए करीब 50 करोड़ रूपए पानी की तरह बहा दिए गए। आज नगर निगम अपनी कामयाबी पर स्वयं अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में इसका भार शहर की जनता पर पडऩे वाला है। उल्लेखनीय है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को साकार करने के लिए सरकारों ने एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। इसके लिए मप्र सरकार भी जमकर पैसा खर्च कर रही है। प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर के खुले में शौच मुक्त बनने के बाद राजधानी के सामने चुनौती थी कि वह भी खुले में शौच मुक्त जिला बने। फिर क्या था स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच से मुक्त बनने के लिए नगर निगम ने तैयार शुरू कर दी। इसके प्रचार-प्रसार और जमीनी हालात बदलने के लिए करीब 50 करोड़ रूपए खर्च किए गए। कांग्रेस का अरोप है की निगम ने इस अभियान में जमकर फिजूलखर्ची और गड़बड़ी की है। इसकी जांच होनी चाहिए, क्योंकि भोपाल की 22 लाख की आबादी में अभी भी करीब 5 लाख लोग खुले में शौच कर रहे हैं। 31 लाख शौचालय पर स्वाहा खुले में शौच मुक्त जिला का तमगा हासिल करने के लिए नगर निगम ने किस तरह फिजूलखर्ची की है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने शौचालय के नाम पर करीब 31 लाख रूपए पानी की तरह बहा दिए। स्वच्छ भारत मिशन में पहले से ही पिछड़े शहर को खुले में शौच मुक्त का तमगा दिलाने के लिए नगर निगम ने शहर में 12 हजार रुपए प्रति शौचालय की दर पर 21 हजार स्थाई शौचालय बनाए हैं। लेकिन आनन-फानन में बने ये शौचालय किसी काम के नहीं हैं। इस काम में नगर निगम ने 25,20,00,000 रूपए खर्च किए हैं। लेकिन अधिकांश शौचालय उपयोगी नहीं है। यही नहीं निगम जिन स्थानों पर शौचालय नहीं बना सका उस जगह के लिए उसने 1800 माड्यूलर टायलेट्स(प्लास्टिक की फेब्रिकेटेड बॉडी) की खरीदी की। इसके लिए 5,87,92,500 खर्च किए गए। यानी एक माड्यूलर टायलेट 32,000 रूपए की लागत से खरीदा गया। जानकार बताते हैं कि माड्यूलर टायलेट की बाजार में कीमत 25,000 रूपए है, उसे निगम ने 32,000 रूपए में खरीदा है। सबसे बड़ी बात यह है कि निगम ने इस खरीदी के लिए एमआईसी से मंजूरी नहीं ली। दरअसल, निगम ने इसमें भी खेल किया है। बताया जाता है कि निगम ने एमआईसी की मंजूरी से बचने के लिए टुकड़ों में खरीदी की। निगम द्वारा माड्यूलर टायलेट की खरीदी के लिए 22 दिसंबर 2016 को 5,87,92,500 रूपए के टेंडर किए थे। लेकिन इस प्रस्ताव को एमआईसी में भी नहीं रखा गया। बाद में 6 जनवरी को 13 से 19 जोन के लिए दूसरी बार टेंडर निकाले गए। नियमों को ताक पर रखकर की गई इस खरीदी पर कांग्रेसी पार्षद आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। कांग्रेसी पार्षदों का कहना है कि वे आगमी एमआईसी और नगर निगम की बैठक में इस मामले को उठाएंगे। इतनी हड़बड़ी क्यों? सवाल यह उठ रहा है कि खुले में शौच मुक्त भोपाल को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों? स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 और ओडीएफ का प्रस्ताव पहले से ही तय था, फिर जगह चिन्हित करके शौच वाले स्थानों पर स्थाई टायलेट क्यों नहीं बनाए गए। निगम के सूत्रों का कहना है कि एमआईसी के प्रस्ताव में तो माड्यूलर टायलेट की खरीदी नहीं था, लेकिन अफसर ने प्रस्ताव बनाकर सदस्यों से चर्चा के बाद मंजूरी दे दी। निगम में नेता प्रतिपक्ष मो. सगीर कहते हैं कि एक स्थाई टायलेट का खर्च 12 हजार है फिर 32 हजार में अस्थाई टायलेट खरीदने का क्या औचित्य? बाजार में 25 हजार में माड्यूलर टायलेट उपलब्ध हैं, फिर 32 हजार के टायलेट क्यों? वह कहते हैं कि इसमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। इस मामले की जांच होनी चाहिए। शौचालयों की हकीकत ओडीएफ का तमगा लेने के लिए निगम ने दिल्ली से आई क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) की टीम को तय स्थानों का ही दौरा कराया। क्यूसीआई ने 85 वार्डों के शहर में महज 17 स्थानों का निरीक्षण किया और पूरे शहर में खुले में शौच की स्थिति का आंकलन किया। लेकिन क्यूसीआई ने जिन स्थानों का निरीक्षण किया वहां भी खामियों की भरमार है, जो टीम को नजर नहीं आई। कहीं शौचालय के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं कुंड़ी बंद नहीं हो रही है। कहीं खुले में मल बह रहा है तो कहीं पानी की व्यवस्था ही नहीं है। चेतक ब्रिज से अन्ना नगर की ओर जाने वाली रेल लाइन के किनारे रखे मॉड्यूलर टॉयलेट्स का मल खुले में बह रहा है। मोती नगर क्षेत्र में सोखते गड्ढा बनाने के बजाय सीधे जमीन पर तीन ईंट की दीवार बनाकर उस पर पटिए रखे हैं। टॉयेलट्स का मल इन गड्ढों में और इसका पानी आस-पास जमा हो रहा है। मानसरोवर कॉम्प्लेक्स के पास रखे गए मॉड्यूलर टॉयलेट्स के पास पानी की टंकी तक नहीं थी। मल निकासी के नाम पर महज डेढ़-दो फीट का गड्ढा खोदा गया है। इसी तरह के नजारे अन्य क्षेत्रों में भी हैं। 5 लाख आज भी कर रहे खुले में शौच नगर निगम ने जैसे-तैसे ओडीएफ का तमगा तो ले लिया है, लेकिन आज भी 5 लाख से अधिक लोग खुले में शौच कर रहे हैं। यह कहना है वार्ड 27 के पार्षद प्रदीप मोनू सक्सेना का। वह कहते हैं की महापौर आलोक शर्मा, निगम आयुक्त छवि भारद्वाज ने जनता के साथ धोखा किया है। शहर में चारों तरफ गंदगी है और इस दुर्दशा को देखने के बाद भी शहर ओडीएफ घोषित हो गया, इससे संपूर्ण प्रक्रिया ही संदेहास्पद है। इस तरह से दिया गया ओडीएफ का तमगा आने वाले दिनों शहर के स्वास्थ्य के साथ खुला खिलवाड़ करने वाला साबित होगा। वाटर एक्ट 1974 के मुताबिक किसी भी वाटर बॉडीज चाहे वो नाला ही क्यों ना हो, उसमें गंदगी नहीं छोड़ी जा सकती। शहर के साथ ही जिले में गांवों में भी स्थिति बदहाल है। आलम यह है कि राजधानी भोपाल के 478 गांवों में सिर्फ 117 गांवों के लोग खुले में शौच के लिए नहीं जाते। जबकि 361 गांवों के अधिकांश लोग खुले में शौच करते हैं। 117 स्थानों पर बैठाया पहरा ओडीएफ के तमगे को सफल बनाने के लिए नगर निगम ने उन चिन्हित 114 स्थानों पर पहरा बैठा रखा है जहां लगातार खुले में शौच की समस्या है। वहां अस्थाई शौचालय तो रखवाए गए हैं लेकिन पानी, बिजली, साफ सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है। इस कारण लोग निगम अमले के पहुंचने से पहले ही शौच कर आते हैं। इसके अलावा शहर की कई कॉलोनियां नगर निगम के हैंडओवर नहीं हुई हैं। वहां अभी लोग खुले में शौच कर रहे हैं। नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष मो. सगीर कहते हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि ओडीएफ को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों? निगम ने बिना प्लानिंग के 12-15 दिन में कागजी तैयारी की, सिटियां बजाई, महिलाओं की बेईज्जती की और शहर को खुले में शौच मुक्त घोषित करवा दिया। इसमें बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। साथ ही माड्यूलर टायलेट्स लगाकर शहर में और गंदगी फैली दी गई है। इतना खर्च होने के बाद भी भोपाल 131 वे नंबर पर है यह शर्म की बात है। इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए। वार्ड 27 के पार्षद प्रदीप मोनू सक्सेना कहते हैं कि भोपाल को खुले में शौच मुक्त करने में भारी फर्जीवाड़ा हुआ है। आज भी कम से कम पांच लाख लोग खुले में शौच कर रहे हैं। शौचालय निर्माण, खरीदी और प्रचार-प्रसार में भ्रष्टाचार हुआ है। फिर भी स्थिति यह है कि पूरे शहर में गंदगी का अंबार है। नालियां चोक हैं, सीवेज का पानी सड़कों पर बह रहा है, लेकिन निगम ने कागजों पर आंकड़ों की बाजीगरी करके स्वच्छ भारत अभियान को पलीता लगाया है। शौचालय के अंदर ही बना दिया शौचालय सागर जिले में तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत मकरोनिया नगर पालिका क्षेत्र में शौचालय बनाने में फर्जीवाड़ा का खुलासा नगर पालिका की एजेंसी द्वारा की गई जांच में हुआ। कुछ हितग्राहियों ने शासन से मिलने वाली 12 हजार रुपए की राशि हड़पने के लिए शौचालय के अंदर ही शौचालय बना डाला तो किसी ने घर की पानी की टंकी अथवा टैंक पर ही ईटें रखकर शौचालय बनाना बता दिया। महात्मां गांधी वार्ड क्रमांक 17 में रचना पिता शिवदयाल अहिरवार ने घर में पहले से बने शौचालय के अंदर ही एक शीट रखकर नया शौचालय निर्माण करना बताया। इन्होंने भी फर्जीवाड़ा करके शासन की राशि हड़पने का प्रयास किया। लेकिन जांच में यह भी पकड़े गए। इसी वार्ड में रविकांत पिता देवेन्द्र अहिरवार ने 16 जनवरी को रसीद क्रमांक 13/38 के तहत शौचालय निर्माण के लिए अंशदान पूंजी की रूप में 1360 रुपए जमा कराए थे। जांच में टैंक पर ईटों को रखकर उसे ही सैप्टिक टैंक बता दिया। वार्ड 17 में करोड़ी पिता लच्छू अहिरवार ने भी पानी के टैंक को सैप्टिक टैंक बताकर शासन की राशि हड़पने का प्रयास किया। इन्होंने पहले अंशदान की रसीद ही नहीं कटवाई थी। गंभीरिया वार्ड क्रमांक 4 में हितग्राही बहादुर पिता मनमोहन अहिरवार ने 25 फरवरी 2016 को रसीद क्रमांक 09/21 के द्वारा अंशदान के रूप में 1360 रुपए जमा किए थे। 7 अक्टूबर 2016 को जब इनके प्रथम चरण के निर्माण की जांच की गई तो इन्होंने गिट्टी के ऊपर ही शीट रखकर इसे ही शौचालय निर्माण बताने का प्रयास किया। जब इनकी यह कारगुजारी पकड़ी गई तो आवेदन निरस्त कर दिया गया। इसके बाद हितग्राही ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए फिर से सही निर्माण कराया तब राशि का भुगतान हो सका। ऐसे और हितग्राही भी जांच में मिले जिन्होंने शासन की राशि हड़पने के लिए शौचालय बनाने तरह-तरह के फर्जीवाड़े किए हैं। पंचायतों में जमकर हुआ भ्रष्टाचार प्रदेश में शौचालय निर्माण के लिए जितनी भी योजनाएं आई सभी में भ्रष्टाचार हुआ है। मध्य प्रदेश में ग्राम पंचायतों और ग्राम कोषों का ऑडिट सीएजी के पर्यवेक्षण में स्वतंत्र एजेंसी के जरिए होने लगा तो गड़बड़ी मिलने का सिलसिला भी शुरू हो गया। हालांकि गड़बड़ी सामने आने के बाद सरकार ने अब नए सरपंचों को निर्माण कार्य पूरा करने की जिम्मेदारी सौंप दी है। देश को निर्मल बनाने के लिए सरकार ने हर घर में शौचालय बनाने के लिए निर्मल भारत अभियान शुरू किया था, लेकिन मप्र में यह अभियान भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। प्रदेश की कई पंचायतों ने तो शौचालय बनाने का बजट ही हजम कर लिया और वहां के लोग आज भी खुले में शौचालय जाने को मजबूर हैं। अगर प्रदेश में हाल ही में पंचायत चुनाव नहीं होते तो शौचालय बनाने के नाम पर भ्रष्टाचार चलता रहता और निर्मल भारत की तस्वीर कागजों पर संवरती रहती। लेकिन पंचायत चुनाव के दौरान तत्कालीन सरपंचों की पोल खोलने के लिए प्रदेशभर में जिस तरह भंडाफोड़ अभियान चला उससे सारी हकीकत सामने आ गई। सबसे पहले निर्मल भारत अभियान में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सतना जिले की आदिवासी बहुल्य मझगवां जनपद की 76 ग्राम पंचायतों में सामने आया। यहां विभिन्न वित्तीय वर्षों के दौरान 18 हजार 316 शौचालयों के निर्माण के लिए बतौर अनुदान दी गई 6 करोड़ 96 लाख 56 हजार रुपए की भारी-भरकम रकम में से 1 करोड़ 66 लाख 60 हजार रुपए की राशि का डंके की चोट पर दुरुपयोग हुआ। गबन की शिकार यह वह रकम है जो सरंपच और सचिवों ने काम स्वीकृत नहीं होने के बाद भी बैंक खातों से निकाल ली गई। अब इस रकम की भरपाई के लिए प्रशासन को पसीना आ रहा है। हालांकि देर से ही सही भ्रष्टाचार की खबर सामने आने के ग्रामीण विकास विभाग ने प्रदेश की 23 हजार पंचायतों में निर्मल भारत अभियान के तहत भेजी गई करीब 475 करोड़ की राशि वापस बुला ली है। इस अभियान के तहत गांवों में शौचालय और अन्य विकास कार्य होने थे पर चुनाव के दौरान इस राशि में भ्रष्टाचार होने की शिकायतों के चलते यह कदम उठाया गया है। उल्लेखनीय है कि 7 साल के अंदर पूरे देश में खुले में शौच की परंपरा के सफाए के केंद्र सरकार के संकल्प के साथ शुरू किया गया निर्मल भारत अभियान मप्र में जमीनी स्तर पर भारी भ्रष्टाचार के दलदल में फंस कर रह गया है। गबन की ऐसे खुली पोल निर्मल भारत अभियान में सतना जिले में करोड़ों के घोटाले की पोल तब खुली जब जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) अभिजीत अग्रवाल (वर्तमान में श्योपुर कलेक्टर) ने जिले के सभी जनपदों के सीईओ को निर्देश देकर इस आशय के ब्यौरे तलब किए कि निर्मल भारत अभियान (एनबीए) के तहत शौचालय निर्माण में राशि आहरण (व्यय), मूल्यांकन उपियोगिता और कार्यपूर्णता की अपडेट स्थिति क्या है? जब रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि निर्मल भारत मद में केंद्र से आए अनुदान में करोड़ों का गोलमाल हुआ है। मझगवां जनपद की 76 पंचायतों में बगैर काम के 1.66 करोड़ रुपए की राशि निकाल ली गई। जिला पंचायत के सीईओ को कमोबेश सभी जनपद सीईओ की ओर से भेजे गए प्रतिवेदनों में भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि निरंतर फोन पर, भ्रमण के दौरान, लिखित-मौखिक और बैठकों में भी सरपंच-सचिवों से अद्यतन रिपोर्ट मांगी गर्इं लेकिन प्रतिवेदन नहीं मिले। ज्यादातर जनपद सीईओ ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि अनुदान राशि का निजी मद में दुरुपयोग करते हुए ऐसी गंभीर अनियमितताएं की गर्इं जो गबन की श्रेणी में आती हैं। भ्रष्टाचार की आ गई बाढ़ निर्मल भारत अभियान के तहत केंद्रीय अनुदान के भुगतान के तहत रकम जिला पंचायत द्वारा आरटीजीएस के माध्यम से जनपदों के जरिए सीधे पंचायतों के खाते में भेजी जाती है। पंचायतों के इन बैंक खातों का संचालन साझा तौर पर सरपंच और सचिव करते हैं। सरपंच और सचिवों की साठगांठ के कारण ही जिले में भारी पैमाने पर गफलत हुई। सतना जिले के मझगवां जनपद में निर्मल भारत अभियान के तहत भ्रष्टाचार का मामला सामने के बाद से तो जैसे भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गई। एक-एक कर कई जिलों की रिपोर्ट सामने आते ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने जब प्रदेशभर के पंचायतों की प्रोग्रेस रिपोर्ट का जायजा लिया और उससे मैदानी रिपोर्ट का मिलान किया तो उसमें अरबों रुपए के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। राशि की गई बंदरबाट ग्राम पंचायत स्तर पर प्रत्येक शौचालय हेतु अकुशल श्रम के तौर पर 2460 रुपए के फर्जी मस्टर भरे गए हैं और मिस्त्री, प्लंबर के नाम से भी 1760 रुपए के फर्जी बिल लगाकर राशि का आहरण किया गया हैं। ग्राम पंचायतों को मानकों से हटकर प्रदाय किए गए शौचालय की बाजार कीमत एवं दर अनुसूची से भी प्राकलन बनवाया जाए तो इस शौचालय पर 5400 रुपए से ज्यादा खर्च नहीं होगा। इस तरह मनरेगा के सिद्घांतों से हटकर राशि की बंदरबांट जनपद स्तर पर सीईओ सौरभसिंह राठौर द्वारा की गई है। भ्रष्टाचार से जुडे इस गंभीर मामले मेंं शिकायतकर्ता गोपाल राठौर द्वारा बताया गया कि इस सारे मामले की शिकायत संभागायुक्त इंदौर, अपर सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, जिला पंचायत के सीईओ से भी की गई हैं। जिसमें जिला पंचायत सीईओ द्वारा इस संबंध में कलेक्टर द्वारा दल गठित कर जांच करने की बात कही गई। कैसे होगा 2019 तक स्वच्छ मध्यप्रदेश? मप्र सरकार ने 2019 तक प्रदेश में लक्षित 90,03,900 हजार शौचालय बनाने की कार्ययोजना बनाई है। बहुत जतन करने पर अक्टूबर 2014 से दिसंबर 2016 के बीच सरकार ने लगभग 11.25 लाख शौचालय बनवाए हैं जबकि 5 साल की कार्ययोजना के अनुसार कुल लक्ष्य 90,03,900 का है। इस तरह इन दो सालों में कम से कम 36 लाख शौचालय बनने चाहिए थे। यदि इसी गति से प्रदेश सरकार ने स्वच्छता मिशन को लागू करने का काम किया तो 2019 तक लगभग 28।50 लाख शौचालय ही बन सकेंगे। इसका मतलब ये होगा कि निर्धारित लक्ष्य के बाकी 61,58,900 शौचालय बनाने के लिए 2019 के बाद 11 साल और लगेंगे। यानी लक्ष्य 2030 तक या इसके बाद ही हासिल हो सकेगा। शौचालय निर्माण के लिए दी गई राशि जिला राशि(करोड़ में) आगर मालवा 20.26 अनूपपुर 23.46 अलीराजपुर 10.40 अशोकनगर 22.64 बालाघाट 25.66 बड़वानी 20.24 बैतूल 24.72 भिंड 30.11 भोपाल 22.07 बुरहानपुर 13.97 छत्तरपुर 19.96 छिंदवाड़ा 37.07 दमोह 11.07 दतिया 16.99 देवास 14.22 धार 44.73 डिंडौरी 15.79 गुना 22.74 ग्वालियर 23.56 हरदा 10.58 होशंगाबाद 19.26 इंदौर 46.22 जबलपुर 18.10 झाबुआ 29.70 कटनी 19.08 खंडवा 45.57 खरगौन 58.93 मंडला 17.91 मंदसौर 33.76 मुरैना 19.10 नरसिंहपुर 13.93 नीमच 25.66 पन्ना 27.76 रायसेन 18.95 राजगढ़ 22.99 रतलाम 24.91 रीवा 21.98 सागर 48.56 सतना 31.80 सीहोर 18.01 सिवनी 21.02 शहडोल 22.11 शाजापुर 17.12 श्योपुर 10.01 शिवपुरी 48.70 सीधी 17.70 सिंगरौली 19.05 टीकमगढ़ 31.59 उज्जैन 27.01 उमरिया 12.97 विदिशा 40.30 कुल 1260 करोड़

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