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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

जनता बेहाल, नेता मालामाल

राजनीतिक सुधार की यह कैसी राह...
3 साल में मंत्रियों की संपति में 436 प्रतिशत की उछाल
भोपाल। जिस राज्य में जन्म लेते ही बच्चे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं, उस राज्य में समाजसेवा के नाम पर राजनीति में आने वाले माननीयों की संपत्ति तेज रफ्तार से बढ़ती जा रही है। है न हैरानी की बात। लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा हो रहा है। यहां जनता दिन पर दिन भले ही बेहाल होती जा रही है, लेकिन माननीय मालामाल होते जा रहे हैं। आलम यह है कि 2013 में जो विधायक लखपति थे वे करोड़पति बन गए हैं। यही नहीं मंत्रियों की संपत्ति की औसत वृद्धि लगभग 436 फीसदी रही है। यह खुलासा हुआ है इलेक्शन वाच व एसोसिएशन फॉर डेमॉक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर)की रिपोर्ट, सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट, नेताओं के आयकर रिटर्न, पार्टी को दी गई खातों की जानकारी और नामी-बेनामी संपत्तियों के आकलन से। प्रदेश के 30 में से 26 मंत्री करोड़पति तीन साल में एक आम शख्स की संपत्ति कितने गुना बढ़ सकती है 10, 20 या अधिक से अधिक 30 प्रतिशत। लेकिन हमारे नेताओं और मंत्रियों के मामले में तीन साल के दौरान उनकी संपत्ति में 60 प्रतिशत से लेकर करीब 700 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो गई है। मप्र सरकार में मंत्री पद पर काबिज रहे नेता इसकी मिसाल हैं। मप्र के मंत्रियों की संपत्ति में उछाल से यह सिद्ध हो गया है कि इच्छाओं की तरह ही अधिक पैसे की कोई सीमा नहीं है। चुनावी राजनीति में आज-कल धनबल पैसा पावर ले आता है। पावर मिलने के बाद उनका पैसा और तेज रफ्तार से बढऩे लगता है। मप्र सरकार के वर्तमान मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित 30 मंत्री हैं। चुनाव जीतने यानि पावर में आने के बाद इनकी संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है। पिछले दो विधानसभा चुनाव 2008 और 2013 के आंकड़ों को ही देखें तो हम पाते हैं कि इस दौरान इनका पावर और रुतबा तो बढ़ा ही। इस दैरान इन्होंने कुछ किया हो या नहीं किया हो, अपनी संपत्ति बढ़ाने में दिल खोलकर काम किया है। कम से कम प्रदेश के सांख्यिकी आंकड़े तो यही कहते हैं। प्रदेश के 30 मंत्रियों में से 26 करोड़पति (87 फीसदी)हैं। करोड़पति मंत्रियों के मामले में प्रदेश का स्थान देशभर में 10वां है। 30 मंत्रियों में से 3 ने इस साल इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) नहीं भरा है। प्रदेश में जन्म लेते ही बच्चों के सिर पर हजारों रुपए का कर्ज हो जाता है। यह कर्ज का ग्राफ हर साल बढ़ता जा रहा है। मगर यहां के मंत्रियों-विधायकों के साथ ऐसा नहीं है। राजनीति में आने वाला हर नेता इससे जुडऩे का कारण समाज सेवा बताता है। कोई राजनेता राजनीति को व्यवसाय नहीं बताता। राजनीति व्यवसाय नहीं होने के बावजूद नेताओं का धनबल का पारा तेजी से ऊपर जाता है। इतनी तरक्की करना व्यवसाय के अलावा किसी अन्य क्षेत्र में संभव नहीं है, लेकिन आज की तारीख में राजनीति से ज्यादा आर्थिक तरक्की वाला क्षेत्र कोई दूसरा नजर नहीं आता। कांग्रेसियों की संपत्ति बढ़ोतरी की रफ्तार धीमी तीन साल के कार्यकाल में करीब 72 फीसदी विधायकों की संपत्ति की औसत वृद्धि 200 फीसदी रही। प्रदेश में पिछले 13 साल से भाजपा की सरकार है इस कारण जहां भाजपा विधायकों की संपत्ति में बेतहासा बढ़ोतरी हुई है वहीं कांग्रेसी विधायकों के संपत्ति में वह वृद्धि नहीं देखी गई जो भाजपा विधायकों में रही। इस दौरान कांग्रेस विधायकों की संपत्ति 82 फीसदी की दर से बढ़ी। जबकि भाजपा विधायकों की वृद्धि कांग्रेस नेताओं की तुलना में पांच गुणा से भी ज्यादा रही। भाजपा विधायकों की संपत्ति 177 और मत्रियों की 436 फीसदी की दर से बढ़ी। चुनाव में बढ़त दिलाने के कई माप हैं। कभी जाति एवं धर्म का एक्सीलेरेटर विरोधियों पर बढ़त दिला देता है तो कभी बाहुबल। धनबल का टॉनिक भी चुनाव में खूब काम करता है। चुनाव आयोग के डंडे का डर भी इन्हें हिला नहीं पाता। तभी तो भ्रष्टाचार को रोकने की कसम खाने वाले तमाम दलों के माननीय पांच साल में ही समाज सेवा करते-करते लखपति से करोड़पति बन जाते हैं। आयकर विभाग भी नहीं सुलझा पाया गणित माननीय समाजसेवा करते-करते कैसे करोड़पति बन गए, इसका गणित आयकर विभाग भी अभी नहीं सुलझा पाया है। तभी तो धनबल की रफ्तार बिना ब्रेक लगाए चलती जा रही है। चुनाव आयोग में नामांकन पत्र के साथ दिया गया हलफनामा इस रफ्तार की तेजी को दर्शाता है। उससे उपलब्ध आंकड़े पर एडीआर ने 2013 में निर्वाचित विधायकों की संपत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जो 2008 में भी चुने गए थे। एडीआर के अध्ययन के आंकड़ों पर गौर करें तो उन विधायकों की सम्पत्ति में बेतहासा वृद्धि हुई है जो पिछली बार करोड़पतियों की लिस्ट में शामिल थे। प्रदेश में राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों पर नजर रख रही इलेक्शन वॉच और एआरडी की टीम ने मिलकर प्रदेश की तीनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस, भाजपा और बसपा के विधायकों की सम्पत्ति का कच्चा चि_ा खोला है। जिसके मुताबित विधानसभा चुनाव 2008 और 2013 में विधायक 8 विधायक ऐसे है जिनकी कुल सम्पत्ति में 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तो 16 विधायक ऐसे भी है जिनकी सम्पत्ति 500 प्रतिशत बढ़ी और 113 ऐसे विधायक है जिनकी सम्पत्ति में 1 प्रतिशत से 500 फीसदी की बढ़त हुई है। लेकिन आयकर विभाग में माननीयों ने अपनी कमाई का जो विवरण दिया है उससे विभाग भी अचंभित है, क्योंकि आयकर रिटर्न में माननीयों ने अपनी आय कमतर बताई है। सबसे तेजी से बढ़ रही राजेंद्र शुक्ल की संपत्ति मप्र में वैसे तो सभी मंत्रियों की संपत्ति में बेतहासा वृद्धि हो रही है। रिपोटर््स के अनुसार प्रदेश में सबसे तेजी से खनिज साधन, वाणिज्य, उद्योग और रोजगार, प्रवासी भारतीय मंत्री राजेंद्र शुक्ल की संपत्ति बढ़ी है। वर्ष 2008 में शुक्ल की कुल संपत्ति 1,99,11,978 रूपए थी जो 2013 में 16,87,26,600 रूपए हो गई। उसके बाद उनकी संपत्ति में 700 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। अगर प्रदेश के करोड़पति मंत्रियों और विधायकों पर निगाह डाले तो सबसे पहला नाम सूक्ष्म एवं लघु उद्योग राज्यमंत्री संजय पाठक का आता है। जिन्होंने 2008 में अपनी कुल सम्पत्ति 34 करोड़ दर्शाई थी लेकिन 2013 चुनाव के शपथ पत्र में उन्होंने अपनी संपत्ति 121 करोड़ बताई है। अब उनकी संपत्ति 200 करोड़ के पार पहुंच गई है। इसमें 83 करोड़ चल और 58 करोड़ की अचल संपत्ति है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि वे देश के दूसरे सबसे बड़े कर्जदार मंत्री भी हैं। पाठक के ऊपर 58 करोड़ से अधिक की देनदारियां हैं। संजय पाठक मूल रूप से खनन कारोबारी हैं। ये विदेशों में आयरन ओर सप्लाई करते हैं। इनका कारोबार इंडोनेशिया, चीन, कोरिया समेत एशिया के करीब 12 देशों में फैला हुआ है। वही संस्कृति, पर्यटन, किसान कल्याण तथा कृषि विकास सुरेन्द्र पटवा के पास 2008 में 6,69,25,537 थी जो 2013 में बढ़ कर 38,02,24,232 रूपए हो गई। अब पिछले 3 साल में उनकी संपत्ति में 450 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है। वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत मलैया के पास 2008 में 1,67,51,015 रूपए की संपत्ति थी जो 2013 में 13,65, 70,862 रूपए पहुंच गई। अब उनकी संपत्ति 600 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। शिवराज सिंह चौहान के पास 2008 में 1,23,31,600 रूपए की संपत्ति थी जो 2013 में 6,27,54,114 रूपए पहुंच गई। अब उनकी संपत्ति 350 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक सफल प्रशासक के साथ ही बेहद विनम्र और मिलनसार राजनेता के रूप में पहचाना जाता है। वहीं देश के चुनावी इतिहास में अब तक 14 नेता ऐसे हुए हैं, जिन्हें लगातार तीन या उससे अधिक बार किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। इस सूची में शिवराज सिंह चौहान का नाम भी है। आदिम जाति कल्याण, अनुसूचित जाति कल्याण ज्ञान सिंह के पास 2008 में 18,63,542 रूपए की संपत्ति थी जो 2013 में 51,59,739 रूपए पहुंच गई। पिछले तीन सालों में उनका बैंक बैलेंस बढ़ गया है। इन तीन सालों में उनके नाम से चार नए बैंक खाते भी खुल गए। मंत्री ज्ञान सिंह ने शहडोल उपचुनाव में घोषणा पत्र में अपनी सम्पत्ति एक करोड़ आठ लाख रूपए से अधिक बताई है। हालांकि सियासी दलों के नेता इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते की नेताओं की सम्पत्ति जीतने के बाद बढ़ती है बल्कि यह दर्शाते है कि मेरी कमीज उसकी कमीज से सफेद है। तीन साल में प्रदेश के अन्य मंत्रियों की संपत्ति में बढ़ोतरी मंत्री 2013 अब बढ़ोतरी प्रतिशत में गोपाल भार्गव- 1,01,29,044 65 प्रतिशत गौरीशंकर बिसेन- 7,41,82,316 61 प्रतिशत नरोत्तम मिश्रा- 2,96,06,762 60 प्रतिशत यशोधरा राजे- 5,95,09,664 262 प्रतिशत उमाशंकर गुप्ता- 4,47,62,820 1 64 प्रतिशत अर्चना चिटनिस- 4,07,67,595 65 प्रतिशत गौरीशंकर शैजवार- 3,69,36,262 63 प्रतिशत कुसुम मेहदेले- 2,07,69,113 71 प्रतिशत ओमप्रकाश धुर्वे- 1,20,02,881 91 प्रतिशत रूस्मत सिंह- 5,45,00,000 225 प्रतिशत विजय शाह- 6,83,91,215 178 प्रतिशत माया सिंह- 8,88,99,100 108 प्रतिशत रामपाल सिंह- 4,63,39,241 178 प्रतिशत भूपेंद्र सिंह- 7,39,86,313 278 प्रतिशत सूर्यप्रकाश मीणा- 9,76,88,419 544 प्रतिशत विश्वास सारंग- 5,64,25,784 180 प्रतिशत ललिता यादव- 1,06,36,128 243 प्रतिशत दीपक जोशी- 36,82,118 78 प्रतिशत पारसचंद्र जैन- 5,40,67,474 105 प्रतिशत शरद जैन- 1,60,00,440 95 प्रतिशत हर्ष सिंह- 4,65,69,017 205 प्रतिशत प्रति व्यक्ति आय बढऩे की रफ्तार सुस्त करीब सवा सौ लाख करोड़ के कर्ज में डूबे प्रदेश में महंगाई से तंग आदमी भले ही फटे हाल हुआ हो, लेकिन हमारे माननीय पिछले तीन सालों में मालामाल हुए हैं। प्रदेश सरकार भले ही मध्यप्रदेश को तेजी से विकसित होने वाले राज्यों की श्रेणी में शुमार करती हो, पर हकीकत ये है कि प्रति व्यक्ति आय बढऩे की रफ्तार इतनी सुस्त है कि पिछले दो साल में मप्र में प्रति व्यक्ति आय 4877 रुपए बढ़कर 56 हजार 516 तक पहुंची है, जबकि राष्ट्रीय औसत एक लाख रुपए ऊपर है। इधर पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में इसी दौरान यह दोगुनी बढ़ी। यह खुलासा सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में हुआ है, जिसमें वर्ष 2012 से 15 तक प्रति व्यक्ति आय में हुई बढ़ोत्तरी को लेकर देशभर के राज्यों की जानकारी दी गई है। मप्र में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 44 फीसदी पीछे है। पिछले तीन सालों के आंकड़ें देखें तो राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में भी करीब दस साल और लग जाएंगे, जबकि छत्तीसगढ़ पांच सालों से कम समय में इसे पूरा कर लेगा। वर्तमान में 13 राज्य ऐसे है जहां प्रति व्यक्ति औसत आय एक लाख रुपए से भी ज्यादा है। पिछले दो सालों में जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम बढ़ोतरी हुई उनमें मध्यप्रदेश भी शामिल है। देखा जाए तो औसतन अन्य राज्यों में जहां यह आय दस से 12 हजार रुपए बढ़ी, वहीं मप्र में पांच हजार रुपए का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। प्रति व्यक्ति आय वह पैमाना है जिसके जरिए यह पता चलता है कि किसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति की कमाई कितनी है। इससे किसी शहर, क्षेत्र या देश में रहने वाले लोगों के रहन-सहन का स्तर और जीवन की गुणवत्ता का पता चलता है। देश की आमदनी में कुल आबादी को भाग देकर प्रति व्यक्ति आय निकाली जाती है। अर्थशास्त्री आरएस तिवारी के अनुसार प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय नहीं बढऩे के पीछे तीन मुख्य वजह है। प्रदेश कृषि पर निर्भर है, उद्योग चौपट है। औद्योगिक विकास आज भी नहीं है, जिसकी मुख्य वजह है कि उद्योगों के लिए अधोसंरचना आज भी वैसी नहीं है जिसकी मांग है। प्रदेश मुख्यत: कृषि आधारित है, लेकिन वो उद्योग में नहीं आता। दूसरा हमारे यहां एजुकेशन का स्तर काफी गिरा हुआ है जिसके चलते काबिल व्यक्तियों की कमी रहती है जिसके चलते कंपनियां यहां नहीं आना चाहती। इंफ्रास्ट्रचर के मामले में भी दूसरे राज्यों ने जिस रफ्तार से आगे बढ़े है उसमें भी हम पीछे है। हालांकि तुलनात्मक रूप से मप्र में प्रति व्यक्ति आय उतनी ज्यादा नहीं बढ़ी लेकिन देखा जाए तो धीरे-धीरे यह बढ़ रही है। कृषि की आमदनी से जितनी आमदनी बढ़ती है उतनी ग्रोथ रेट बढ़ती है। नेताओं के अच्छे दिन आ गए! नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशानुसार जन के तो नहीं, लेकिन जन-प्रतिनिधियों के अच्छे दिन आ गए हैं। मध्य प्रदेश में विधायकों और मंत्रियों की तनख्वाह दोगुनी-चौगुनी हो रही है। महंगाई के इस दौर में इन्हें तो भरपूर राहत मिल रही है। मध्य प्रदेश में विधायकों का वेतन 45-55 प्रतिशत बढ़ गया है। विधायकों को अब 1 लाख 10 हजार रुपये, मिलेंगे। मुख्यमंत्री का वेतन 2 लाख रुपये महीना और मंत्रियों का वेतन एक लाख 70 हजार रुपये हो गया है। लेकिन जनता की सेवा के नाम पर राजनीति करने वाले ये नेता जनता की फिक्र तनिक नहीं करते हैं। उधर, एडीआर के जगदीप छोकर कहते हैं की मप्र विधानसभा में करीब 70 प्रतिशत सदस्य करोड़पति हैं, 230 में से 161। आपराधिक मामलों वाले 32 प्रतिशत सदस्य हैं यानी 230 में से 173। यह वो राज्य है, जिस पर 1,17,000 करोड़ का कर्ज है। 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह की सरकार के समय यह आंकड़ा 3,300 करोड़ का था, लेकिन 2017 तक आते-आते शिवराज सिंह चौहान की सराकर में ये 1,17,000 करोड़ का हो गया। शिवराज सरकार का दावा है कि उसने राज्य पर लगे बीमारू का तमगा हटा दिया है, जो उसके साथ 1956 से लगा हुआ था। लेकिन अब वो फिर आईसीयू जैसे हालात में पहुंच गया है। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 18,000 रुपये थी, अब 59,000 रुपये है, जबकि छत्तीसगढ़ में 69,000 रुपये है। ये वो राज्य हैं जहां हमारे किसानों की आत्महत्या लगातार खराब बनी हुई है। एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें 2568 किसान महाराष्ट्र के थे। तेलंगाना में 898 किसानों ने और मध्य प्रदेश में 826 किसानों ने खुदकुशी की। दो साल से मंत्रियों ने नहीं दिया संपत्ति का ब्यौरा प्रदेश के मंत्रियों की संपत्ति का मामला हमेशा विवादों में रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने करीब छह साल पहले घोषणा की थी कि राज्य के उनके समेत सभी मंत्री और अधिकारी हर साल अपनी संपत्ति सार्वजनिक करेंगे। मंत्रीगण जहां विधानसभा में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देंगे, जबकि अधिकारी सरकार के समक्ष, लेकिन गत दो वर्षों से इस घोषणा पर अमल नहीं हो पाया है। राज्य शासन के केवल एक मंत्री जयंत मलैया को छोड़ दें, तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत किसी भी मंत्री ने दो साल से अपनी संपत्ति का ब्यौरा विधानसभा के पटल पर नहीं रखा है, जबकि चुनाव लड़ते समय शपथ पत्र में घोषित संपत्ति और दो साल पूर्व विधानसभा में प्रस्तुत ब्यौरे में काफी विसंगतियां देखने को मिली थीं। इसके बावजूद अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने में किसी भी मंत्री, यहां तक कि मुख्यमंत्री ने भी रुचि नहीं दिखाई। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अगस्त 2010 में घोषणा की थी कि उनकी सरकार के सभी मंत्री और वे स्वयं भी हर साल विधानसभा के पटल पर अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करेंगे। इसके साथ ही अधिकारियों को भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने की बात उन्होंने कही थी। शुरुआत दो-तीन साल तक तो मंत्रियों ने इस घोषणा को गंभीरता से लिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव कहते हैं कि लगता है कि मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं भी अपनी घोषणा को भूल चुके हैं, शायद इसीलिए यह स्थिति बनी है और यह हालात तब हैं, जब पिछले विधानसभा निर्वाचन के दौरान चुनाव लड़ते समय शपथ-पत्र में दिए जाने वाले संपत्ति के ब्यौरे और विधानसभा में प्रस्तुत ब्यौरे में काफी अंतर पाया गया था। मंत्री दें आय का आय का ब्यौरा शुचिता की बात करने वाली प्रदेश भाजपा सरकार के मंत्रियों द्वारा अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने पर एसोसिएशन आफ डेमोके्रटिक रिफार्मस (एडीआर) की राज्य शाखा मप्र इलेक्शन वॉच ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। मप्र इलेक्शन वॉच की ओर से लिखे पत्र में कहा गया है कि आज देश को स्वच्छ राजनीति की अत्यंत आवश्यकता है। हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा चुनाव के दौरान संपत्ति एवं देनदारियों की जानकारी दी जाती है। यह व्यवस्था लोकसभा एवं विधानसभा दोनों के लिए हैं। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 75 (अ) के अनुसार लोकसभा एवं राज्यसभा के प्रतिनिधि को अपनी संपत्ति और देनदारियों की जानकारी हर वर्ष लोकसभा एवं राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। परंतु विधानसभाओं के सदस्यों के लिए इस प्रकार का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसी पहल की है। मध्यप्रदेश में केवल मंत्रियों को ही यह जानकारी विधानसभा के सामने रखनी होती है। परंतु ऐसा करना भी स्वेच्छिक है। मध्यप्रदेश विधानसभा की बेवसाइट देखने पर पता चला कि पिछले (त्रयोदश) विधानसभा के मंत्रियों में से केवल 16 ने ही उक्त जानकारी सार्वजनिक की है। वर्ष 2015-16 में किसी भी मंत्री या विधायक ने अपनी जानकारी सार्वजनिक नहीं की। संगठन ने शिवराज से आग्रह किया है कि अपने दूसरे नीतिगत फैसलों की तरह वे अपने शासन में पारदर्शिता लाने के लिए जनप्रतिनिधियों की संपत्ति एवं देनदारियों की जानकारी हर वर्ष सार्वजनिक करने की पहल भी करें। इस प्रकार की पहल नेताओं के सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकती है। मंत्रियों की संपत्ति की जांच होनी चाहिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के मंत्रियों के पास जमा की गई संपत्ति की जांच की मांग की है। कांग्रेस महासचिव का कहना है कि प्रदेश में भाजपा 2003 से सत्ता में है। इस दौरान प्रदेश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि अधिकारियों-कर्मचारियों के पास से करोड़ों की संपत्ति मिली है, तो यह अनुमान लगाना आसान होगा कि मंत्रियों के पास कितनी संपत्ति होगी। सिंह ने कहा कि इस बात की जांच की जानी चाहिए कि मंत्रियों के पास 2003 में कितनी संपत्ति थी और अब कतनी है। सिंह ने आरोप लगाया कि इस समय भ्रष्टाचार मध्यप्रदेश में चरम सीमा पर है और अब कोई भी काम बिना कमीशन के नहीं होता है। उधर, मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण यादव ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान को चि_ी लिख कहा है कि सांसदों और विधायकों से मांगे गए ब्योरे को भाजपा सार्वजनिक करे। अरूण यादव की भेजी गई चि_ी में लिखा है कि भाजपा का कैशलेस ट्रांसजेक्शन पर जोर देना बहुत अच्छा कदम है। अरूण यादव ने लिखा है कि मैं मानता हूं, मप्र में एकत्र होनेवाली जानकारियां आपके माध्यम से ही दिल्ली भेजी जा रही होंगी। यादव ने कहा है कि मेरा खुला अभिमत है कि मप्र के बेहद ईमानदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, उनके कैबिनेट मंत्री और भाजपा के सांसद-विधायक सहित पार्टी के अन्य जिम्मेदार पदाधिकारी अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का साहस कभी नहीं जुटा सकते। मेरा आपसे अनुरोध है कि पार्टी के निर्देशों के बाद मंत्रियों के भेजे गए ब्योरों को भाजपा की अधिकारिक बेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए जरूरी है कि प्रदेश की जनता जान सके कि भाजपा के नेताओं ने 13 साल में अपना कितना आर्थिक विकास किया है। अरूण यादव ने अंत में लिखा है कि मुझे पूरा भरोसा है और बेसब्री से इंतजार है कि आप मेरे निवेदन और मांग पर विचार करेंगे। सांसदों की संपत्ति भी भर रही उड़ान विधायकों और प्रदेश सरकार के मंत्रियों की तरह ही सांसदों की संपत्ति में भी उड़ान जारी है। यह इस बात का संकेत है कि अब चुनाव ईमानदार और गरीब उम्मीदवारों के बस की बात नहीं रह गया है। मप्र की गिनती अब तक भले ही गरीब प्रदेशों में होती हो, लेकिन यहां के सांसद कमोबेश गरीब तो नहीं रहे। 2014 में चुनाव के दौरान सांसदों ने चुनाव आयोग को दिए अपने संपत्ति ब्यौरे में जो जानकारी दी है उसमें करीब दो साल में 200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों पर गौर करें तो सूबे की मौजूदा 29 लोकसभा सीटों में से 25 सीटों में करोड़पति उम्मीदवार चुनाव जीतकर आए थे। मात्र चार सांसद ही जनता की नजर में गरीब थे, जिनके पास वार्षिक संपत्ति का आंकड़ा करोड़ में नहीं, बल्कि लाख रुपए में था। लेकिन दो साल में ये भी करोड़पति हो गए हैं। मजेदार बात यह है कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के 85 प्रतिशत करोड़पति सांसद चुनाव जीतकर आए थे वहीं कांगे्रस के 100 प्रतिशत यानि दो में से दोनों सांसद करोड़पति थे। लेकिन आज सभी यानी 100 फीसदी सांसद करोड़पति हो गए हैं। सांसदों की संपत्ति मंत्री 2014 कमलनाथ-छिंदवाड़ा 206.90 करोड़ ज्योतिरादित्य सिंधिया -गुना 33.08 करोड़ सुषमा स्वराज - विदिशा 17.55 करोड़ उदय प्रताप सिंह - होशंगाबाद 13.33 करोड़ अनूप मिश्रा - मुरैना 11.05 करोड़ सुधीर गुप्ता -मंदसौर 05.74 करोड़ नागेंद्र सिंह - खजुराहो 04.45 करोड़ नंदकुमार चौहान -खंडवा 04.01 करोड़ प्रहलाद पटेल -दमोह 03.95 करोड़ गणेश सिंह - सतना 03.78 करोड़ सुभाष पटेल - खरगौन 03.61 करोड़ रीति पाठक - सीधी 03.34 करोड़ रोडमल नागर - राजगढ़ 02.85 करोड़ राकेश सिंह - जबलपुर 02.78 करोड़ ज्योति धुर्वे -बैतूल 02.62 करोड़ फग्गन सिंह कुलस्ते -मंडला 02.57 करोड़ बोध सिंह भगत -बालाघाट 02.49 करोड़ लक्ष्मीनारायण यादव -सागर 02.39 करोड़ भागीरथ प्रसाद - भिंड 02.12 करोड़ चिंतामणि मालवीय - उज्जैन 01.88 करोड़ सुमित्रा महाजन - इंदौर 01.87 करोड़ आलोक संजर -भोपाल 01.45 करोड़ कांतिलाल भूरिया - रतलाम 02.22 करोड़ नरेंद्र सिंह तोमर -ग्वालियर 01.14 करोड़ जनार्दन मिश्रा - रीवा 01.01 करोड़ डॉ. वीरेंद्र कुमार- टीकमगढ़ 01.07 करोड ज्ञान सिंह- शहडोल 01.80 करोड़ मनोहर ऊंटवाल- देवास 01.30 करोड सावित्री ठाकुर- धार 01.01 करोड

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