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भेड़ाघाट

Tuesday, March 21, 2017

मौत की अवैध खदानें

रोजाना सामने आ रहा खौफनाक मंजर
हर दिन औसतन एक की मौत
भोपाल, रायसेन, बड़वानी। मप्र में एक तरफ सरकार नमामि देवी नर्मदे यात्रा निकालकर अवैध खनन रोकने में लगी हुई है वहीं दूसरी तरफ अवैध खदानें मौत का कारण बनता जा रहा है। आलम यह है कि प्रदेश में हर दिन औसतन एक की मौत अवैध खनन के कारण हो रही है। लेकिन प्रशासन गहरी नींद में सोया हुआ है। अभी हाल ही में गैरतगंज में तीन मासूम एक खदान में डूबकर काल के गाल में समा गए। वहीं शनिवार को बड़वानी में अवैध खदान में रेत खनन कर रहे दो मजदूरों की मिट्टी धसने से दबने पर मौत हो गई। घटना जिला मुख्यालय से लगे डूब प्रभावित ग्राम छोटी कसरावद के देदला फलिया की है। घटना के बाद रेत खनन में लगे अन्य मजदूर वहां से ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर भाग निकले। दावों के बावजुद अवैध खनन रायसेन और बड़वानी सहित अन्य जिला प्रशासन लगातार दावा करते हैं कि उनके जिले में अवैध खनन नहीं हो रहा है। प्रशासन भले ही सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और एनजीटी के सामने लाख दावे कर रहा है कि प्रदेश में अवैध रेत खनन नहीं हो रहा है। इन दावों की पोल तब खुलती है जब अवैध खदानों में मौत होती है। बड़वानी में पुनिया फलिया सजवानी निवासी बाला पिता नानूराम (25) और सुनील पिता बनिया (20) की अवैध खनन के दौरान खदान धसने से हुई मौत के बाद प्रशासन सांसत में है। डूब क्षेत्र में चल रहा खनन जहां पर अवैध रेत खदान चल रहा है वो जगह सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आ रही है। जिस जमीन पर अवैध खदान है वो जगह सुरपाल पिता बुधिया की पड़त जमीन है। सुरपाल को इस जमीन का मुआवजा भी मिल चुका है। एनबीए के देवराम कनेरा, मुकेश भगोरिया ने बताया कि जिले में पेंड्रा, नंदगांव, पिपलूद, पिछोड़ी, बडग़ांव, छोटी कसरावद सहित नर्मदा पट्टी के गांवों में धड़ल्ले से अवैध रेत खनन चल रहा है। अवैध रेत खनन पर रोक लगाने में प्रशासन पूरी तरह से असमर्थ दिख रहा है। हम प्रशासन को लंबे समय से अवैध रेत खनन के सबूत देते आ रहे है। प्रशासन सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी के आदेशों को पालन कराने के बजाए हम पर दबाव बनाने के लिए अवैध खनन वालों के साथ मिलकर आंदोलन कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज करा रहा है। अब सरकार बताए खदान दबने से हुई दो मौत का जिम्मेदार प्रशासन है या खनन माफिया। ये वे घटनाएं हैं जो पिछले चार दिनों में मीडिया के माध्यम से आमजन तक पहुंचीं। इसके अलावा खनन क्षेत्र में अन्य सैकड़ों मौतें होती हैं जिनका पता मीडिया प्रतिनिधियों को नहीं हो पाता है। कुछ का पता हो भी पाता है तो पुलिस इन मौतों का अन्य कारण बताकर मामले को रफादफा कर देती है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे प्रशासन की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी ने मजदूरों में भय पैदा कर दिया है। एक के बाद एक हो रही आदिवासियों समेत मजलूमों की मौतों की सच्चाई कोई भी बताने को तैयार नहीं है। दरअसल, प्रदेश में जिस तरह शहर, गांव, स्कूल, कॉलेज या अन्य सार्वजनिक स्थल के पास प्रशासन की निगरानी में वैध-अवैध खनन हो रहा है उससे बनने वाले गड्ढे जानलेवा हो रहे है। प्रदेश में आए दिन किसी न किसी जगह इन कुंआनुमा गड्ढ़ों में कोई न कोई मौत के मुंह में जा रहा है। स्थिति विकट यह है कि मृतकों के परिजनों की कोई गुहार भी नहीं सुनता है। प्रदेश में खनन क्षेत्र में हो रही मजदूरों की मौत के लिए प्रशासन की भूमिका संतोषजनक नहीं है। खोखली हो रही धरती पत्थर, गिट्टी, मुरम, मिट्टी आदि निकालने की लालसा में माफिया धरती को खोखला तो कर रहा है लेकिन खदानों को भरने की सुध कभी किसी ने नहीं ली। पंचायत से लेकर जिला प्रशासन इसके बराबर के दोषी हैं। कानून का प्रावधान है कि खनन करने वाला उसे भरेगा, बावजूद इसके खदानों को भरने के प्रति किसी ने अपनी जि मेदारी नहीं निभाई। इसके लिए लीजधारक से भी अपेक्षित रकम नहीं ली जा रही है। शायद यही वजह रही कि लीजधारक या फिर अवैध खनन करने वाले जमकर चांदी कूट रहे हैं। दूरदृष्टि रखने वाले प्रशासन के काबिल अफसरों ने इस मामले को लेकर जैसे आंखों पर पट्टी बांधी रखी। एक दशक से ज्यादा समय तक यह खेल चला। बहरहाल, ङील बन चुकी इन खदानों में बेगुनाह लोगों की जान जा रही है। मरने वालों में देश के भविष्य युवाओं की इनमें तादाद ज्यादा है। नियमों का पालन नहीं खदानों को लेकर कागजों पर की गई कसरत वास्तव में होती तो प्रदेश में कभी ङील नहीं बनती। खनन से जो गड्ढे हुए, वो भी भर जाते। लीज देने के निर्धारित नियमों में बाकायदा इसका प्रावधान है। सुरक्षा की दृष्टि से सीढ़ीनुमा (बेंच) तकनीकी पर खनन करने के निर्देश दिए हुए हैं। गहरी खाई बनी खदानों की दशा बयां करतीं है कि नियमों पर कभी अमल नहीं करवाया गया। देखा यह जा रहा है कि जहां दो से चार फुट खुदाई का परमिशन है वहां खदानें 40-50 फुट गहरी खाई बन चुकी हैं। जिन्होंने ङील का रूप धारण किया हुआ है। जो मौत का कुआं बन चुकी हैं। एक अनुमान के तहत प्रदेशभर में ऐसी खदानें 1300 सौ से ज्यादा हैं। उदाहरण देने के लिए एक भी खदान ऐसी नहीं है, जिसको पूरी तरह भरा गया हो। बुंदेलखंड में सबसे अधिक मौत की खदानें खनिज संपदा से परिपूर्ण मप्र के हिस्से वाले बुंदेलखंड के जिलों में सबसे अधिक मौत की खदाने हैं। इस क्षेत्र में मुरम खोदकर जो अवैध खदानें बनी है वे अब मौत का कुंआ बन गई है। टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह जिले के ग्रामीण अंचलों में सड़क निर्माण और व्यापार के लिए मुरम खोदकर बनाई गई अवैध खदानें अब मौत के कुएं बन गए हैं। दबंगों और ठेकेदारों का खौफ इतना है कि ग्रामीण शिकायत करने से भी डरते हैं। वहीं खनिज विभाग शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं कर रहा है। अधिकांश गांव में सड़क किनारे शासकीय भूमि पर मुरम खोदकर इन्हें छोड़ दिया गया है जिससे यहां बने कुएं हादसे को न्योता दे रही हैं। टीकमगढ़ के पास मऊघाट रोड पर सरकारी भूमि पर अवैध खनन किया जा रहा है। अवैध खनन की खदान सड़क के नजदीक होने से आए दिन हादसे होते रहते हैं। जिससें ग्रामीणों को हमेशा डर बना रहता है। ऐसे ही सुनवाहा गांव के पास भी अवैध मुरम की खदानें है। बिना अनुमति के रसूखदार ठेकेदारों द्वारा रात में मुरम खोदकर अवैध खनन किया जा रहा है और मोटे दामों पर बेचने के कारण शाासन को राजस्व हानि हो रही है। पिछले साल अक्टूबर में नगर के ढोंगा क्षेत्र में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास तीन वर्ष पहले इसी तरह की मुरम खदान में डूबने के कारण 4 बच्चों की मौत हो गई थी। इसके साथ ही कृषि उपज मंडी के पास बीड़ी कॉलोनी, सुनवाहा गांव में मुरम खनन किए जाने के कारण इन खदानों में कई हादसे हो चुके है। सरकारी भूमियों को खोद कर बड़ी खदानें बनाई गई हैं। इन खदानों में पानी भरने से हमेशा बच्चों का डूबने का डर बना रहता है। खनन को रोकने के लिए जिला प्रशासन से शिकायत की गई थी। फिर भी कोई कार्रवाई नही की गई। मजदूरों की मौत पर भी मौन प्रदेश में अवैध खनन के दौरान भी मजदूरों की मौतें होती हैं, लेकिन प्रशासन और माफिया की मिलीभगत से मामला सामने नहीं आ पाता है। अब तक हुई मौतों की रोशनी में विचार करें तो इस दिशा में कई बातें सामने आती हैं। प्रदेश की इन पत्थर, मोरम, मिट्टी, बालू और कोयला आदि की अवैध खदानों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर विस्फोटक पदार्थों के इस्तेमाल से अनभिज्ञ होते हैं और उन्हें खनन के लिए प्रशिक्षित भी नहीं किया जाता। परिणामस्वरूप जरा सी चूक होने पर वे अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। यहां की पत्थर खदानें 50 मीटर से लेकर 200 मीटर तक गहरी हो चुकी हैं। इन खदानों में काम करना अप्रशिक्षित मजदूरों के लिए शेर की मांद में घुसने के बराबर है। दूसरी वजह यह कि प्रदेश में डोलो स्टोन, सैंड स्टोन, लाइम स्टोन, कोयला, बालू और मोरम आदि का अकूत भंडार है। इन खनिज पदार्थों के दोहन के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के माफिया और सफेदपोश ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सत्ताधारी पार्टियों के नुमाइंदों और मलाईदार मंत्रालयों की कुर्सी संभाल रहे कुछ सफेदपोशों ने खनन क्षेत्र में धन उगाही के लिए बाकायदा अपने एजेंट तैनात कर रखे हैं और कानून की धज्जियां उड़ाकर अवैध खनन एवं परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं। माफिया ने तो पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल पैदा कर रखा है। वे प्रदेश की पहाडिय़ों पर खुलेआम अवैध खनन करा रहे हैं। साथ ही खनन विभाग द्वारा जारी एमएम-11 परमिट के बिना मिट्टी, मोरम, बालू और बोल्डर आदि का परिवहन करा रहे हैं। शासन द्वारा निर्धारित मानकों को खनन क्षेत्र का कोई भी खदान संचालक पूरा नहीं कर रहा है। खदानों में सुरक्षा के कोई भी इंतजाम नहीं हैं। इस कारण खदानें मौत का घर बन गई हैं। इनका कहना है - मामला गंभीर है। मामले की जांच कराई जा रही है। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। जिले में अवैध पूरी तरह प्रतिबंधित है। अवैध खनन करने वालों पर बराबर कार्रवाई की जा रही है। तेजस्वी नायक कलेक्टर बड़वानी -अवैध खनन के खिलाफ निरंतर कार्रवाई हो रही है। इस मामले में ट्रैक्टर-ट्रॉली क्रमांक एमपी-10-एए-7302 के मालिक महेंद्र दरबार पिता मुकेश दरबार निवासी सेगांव के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 के तहत केस दर्ज कर लिया गया है। अवैध खनन में लगा ट्रैक्टर भी जब्त कर लिया गया है। दोषियों के खिलाफ शख्त कार्रवाई होगी। महेश बड़ोले एसडीएम, बड़वानी -----------

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